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-- ठोठ
डांग
ठोठ-वि० [हिं०ठूठ-सूखा वृक्ष] जड़, निःसार । बातें, बोली ठोल हाँसी के कन्हाई दिन उदा० पुनि लगे फरकन होठ । रहि गई फिर
- आगे हैं।
-आलम जिम ठोठ।
-सोमनाथ | ठौका-संज्ञा, स्त्री० [हिं० ठोकरा] चोट, प्रहार । ठोढे-संज्ञा, पु० [हिं० ठौर] स्थान, जगह ।। उदा० यथा चोर को चेत भूल जात पनहीं मिले । उदा० कौंधत दामिनि कूकत मोर रहैं मिलि भेकी भरि आये दोउ नैन गहे आइ ठौका लग्यौ । भयानक ठोढ़े। -रघुनाथ
-बोधा ठोली-संज्ञा, स्त्री० [हिं० ठठोली] हँसी, दिल्ल- ठौन-पंज्ञा, स्त्री० [हिं० ठवनि] मुद्रा, ढंग। गी।
उदा० बैन खुले मुकुले उरजात जकी विथकी उदा० अजों मसि भीजी नहीं ऐसी मन बसी गति ठीन ठई है।
-दास
उंबर-संज्ञा, पु० [सं०] सजावट, पाडंबर ।।
इकली डरी हौं घन देख के डरी है, खायर उदा० तापर संवारयो सेत अंबर को डंबर
विष की डरी हौं घनस्याम म जाइहीं। सिधोरी स्याम संनिधि निहारी काहू न
-सेनापति जनी ।
--- दास डरौल-वि० [हिं डर] डरपोक, कायर । डकना-क्रि० प्र० [हिं० डाँकना-पार करना] उदा० अमल कठोरे गोरे चीकने उतंग भौरे बरपार होना, व्यतीत होना।
बस मोरे मन नेक ना डरोल ये। उदा० सुनि उद्धव मद्धि वसंत वसंत सु मास न
-सिवनाथ कोउ डकै तन में ।
--सूरति मिश्र डहकना-क्रि० अ० [हिं० दहाड़] दहाड़ मारना, डगल-संज्ञा, पू० प्रा०, हिं० डेल] ढेला, रोड़ा जोर से चिल्लाना । इंट या पाषाण का टुकड़ा।
उदा० ताल देत भैरव पिसाच, मिलि प्रेत डहउदा. चिरी, चुगत कोइ डगल उठावै । जिव तब
क्कै।
-चन्द्रशेखर चिरिया को उडि जावै । -- जसवंतसिंह
उहारना-क्रि० स० [हिं० डाहना] डाहना, डगेना-संज्ञा, पु० [बँ.] बांस की लम्बी छड़ी जलाना तंग करना । जिसमें लासा लगा कर बहेलिया लोग पक्षी पकड़ उदा० छावै ना छराक छिति छोर लौं छन्वीली लेते हैं।
छटा छंदन छया मैं पौन डारन डहारै ना। उदा० मोर मुकुट की टटिया लीन्हें कीन्हें नैन
-नन्दराम डगना। चितवनि चेंपु लगाय पलक में डाउरी-संज्ञा, स्त्री० [सं० डिब] लड़की।
बिधवत खंजन नैना। - बकसीहंसराज उदा० बाहिर पौरि न दीजिये पाउँरी बाउरी डडा-संज्ञा, पु० [?] हाथ का एक प्राभूषण,
होय सु डाउरी डोलै।
-- देव कंगन ।
डांग--संज्ञा, पु० [?] १. पहाड़, पर्वत, २. पहाड़ी उदा० गोरे डडा पहुँचानि बिलोकत रीझि रंग्यौ । जंगल । लपटाय गयौ है ।
---घनानन्द उदा० दान साहि जू के बैर बैरिन की बरनारि, डरना-क्रि० अ० [हिं० डालना] पड़े रहना,
भजि भजि सुंग चढ़ी एते ऊँचे डाँग के । २. डर जाना।
डाँग चौकिया पहुँचे सेख । गंगा-- उदा० अांखन के मारे कैयो लाखन डरे रहैं ।
बीर सिंघ देख्यौ सुभबेख । ---केशव -ठाकुर
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