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कुरना
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छाती मूठि छूटति न नीठि ठनि हुरकी ।
- देव
दुरना- क्रि० प्र० [हिं० ढलना] अनुरक्त होना, प्रसन्न होना, आसक्त होना ।
उदा० लांक की लचक लसै लहँगा की ढिग कुरै चुरी ही में चाहि चूर भयो वाही घर
को ।
आलम
ढरकि ढार दुरि ढिग भई
श्राइ |
ढीठ ढिठाई —बिहारी दुराना क्रि० स० [हिं० ढाल ] १. चलाना, फिराना, मटकाना, २. झलना, हाँकना, [हिं०, डुलाना ] ।
उदा
. लोचन दुराय, कछू मृदु मुसक्याय, नेह भीनी बतियानि लड़काय बतराय हो ।
दूक – संज्ञा, पु० [प्रा० ढुक्क] दाँव, घात,
अवसर ।
घनानन्द
२. बीजनौं दुरावती सखीजन त्यों सीतहूँ मैं ।
— देव ताक,
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उदा० देव मधुकर ढूक ढूकत मधूक धोखे, माधवी मधुर मधु लालच लरे परत |
— देव छैल भये छतियाँ छिरकी फिरौ कामरी प्रोढ़े गुलाल कों दूके । - पद्माकर
प्रवृत्त होना,
ठूकना - क्रि० प्र० [प्रा० ढुक्क ] "तन्मय होना, लगे रहना । उदा० देव मधुकर ढूक ढूकत मधूक धोखे माधवी — देव मधुर मधु लालच लरे परत | दूरी - संज्ञा, स्त्री [हिं० ढोरी] धुन, उदा० निकस जु सबै लरिका हठ सों, आइ के लाइहै दूरी 1 हेरा - संज्ञा, पु० [हिं० ढेला] ढेला, टुकड़ा, कंकड़ । उदा० मेघन को राखे ढेरा, तख्त का लुटावै मन का सँभारे झेरा, ऐसो नर भाट है
डेरा
। - गंग ठोक—– संज्ञा, पु० [हिं० झुकना ] नमन, नमस्कार,
दण्डवत ।
रट । इन नैननि -गंग मिट्टी का
उदा० दया सबन पै राखि गुरन के चरन ठाकत । - ब्रजनिधि ढोर अव्य० [हिं० तुरना] १. साथ, पीछे २. पीटने की क्रिया [सं० ढोल ] । उदा० १. निसि द्योस खरी उर माँझ अरी, छबि
रंग मरी मुरि चाहन की । तकि मोरनि
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डौरी
त्यों चख ढोर रहे, ढरिगौ हिय ढोरनि बाहनि की । -घनानन्द २. कहै जगमनि माथौ ढोरि, यह सब रामसाहि का खोरि । - केशव ढोरना- क्रि० स० [प्रा० ढोयरण] १. भेंट करना, देना, गिरना, डालना २. प्रवाहित करना, बहाना ३. हिलाना, चलाना । उदा० १. रीझनि प्रान आनंदघन ख्याल | कोऊ बाल गुलाल ले लाले भरे, कोऊ कुंकम सीस तैं ढोरत है । सूरति मिश्र किती उपमानि —घनानन्द
अरगजा ढोरि करेंगी घनानंद
२. अंगनि रंग-तरंग बढ़ी सु के पानिप ढोरति है ।
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३. कारन कौन सीस इन ढोर्यो । मोहि देखि अपनी मुख मोर्यो । – जसवंत सिंह ढोरनि – संज्ञा, स्त्री० [हिं० ढाल ] १. ढर्रे, ढंग २. ढलने की क्रिया, बहना, मुड़ना । उदा० १. तकि मोरनि त्यों चख ढोर रहे, ढरिगौ हिय ढोरनि बाहनि की ।
घनानन्द
ढोलिया - संज्ञा, पु० [हिं० ढोल] ढोल बजाने
वाला, नट का सहायक । उदा० ढोलिया यों कहै हौं न बदौं इत प्रापु दिवयन के कन फोरत । बोषा ढोल - संज्ञा, पु० १. पास निकट, २. किनारा । उदा० मेरे दोष देखौ तौ परेखो है श्रलेखो एजू मीन ढोले निधि कैसें बूझियत गादरौ ।
[हिं० घोर]
- घनानन्द
ढोवा - संज्ञा, पु० [?] आक्रमण, चढ़ाई | उदा० मनहु पर्वतन प्रति बल भयौ । इन्द्रपुरी को ढोवा ठयो । -केशव ढौका - संज्ञा, पु० [देश०] हिचकी घिघ्घी २. प्यास । उदा मरिश्राए दोउ नैन गरे आइ ढोका लग्यो । - बोधा
ठौर- संज्ञा, पु० [बु ं०] ढंग, तरीका । उदा० चाल न वा चरचान वा चातुरी वा रसरीति न प्रीति को ढौर है ।
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- ठाकुर
ढौरी - संज्ञा, स्त्री० [देश०] प्रादत, रट, धुनि । उदा० ठौरी कौन लागी दुरि जैबे की सिगरोदिन छिनु न रहत घर कहीं का कन्हैया को ।
-ग्रासम
ठोरी लाई सुनन की कहि गोरी
मुसुकात । - बिहारी