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बाहर भी निर्मित होने लगीं। स्वयं हिन्दी प्रदेश के रहने वाले ग्वाल और चन्द्रशेखर बाजपेयी पटियाला और नामा प्रदेश में रहकर दीर्घकाल तक रीतिकाल का सृजन करते रहे । यही कारण है कि इनकी रचनाओं पर उर्दू, फारसी के प्रभाव के अतिरिक्त यत्र-तत्र पंजाबी का मी प्रमाव लक्षित होता है । चन्द्रशेखर बाजपेयी के एकाध छन्द में पंजाबी क्रियापदों को भी झलक मिलती है, यथा 'होदा मन मुदित घरोदा सुख देत मट् निबिड़ निकुंज जे जसोदा के नगर मैं ।'
स्पष्टतया इस पंक्ति में 'होदा' शब्द 'होना' अर्थ में प्रयुक्त है, किन्तु 'धरोदा' में पंजाबी षष्ठी विभक्ति 'दा' लगाकर कवि ने 'घर का' अर्थ ग्रहण किया है। इसी प्रकार पंजाबी की षष्ठी विभक्ति का प्रयोग बेनी प्रवीन के 'नवरस तरंग' में भी देखने को मिला है
पाई सग सखिन के पनिघट तें लै घट, बोली तौलौं सारसी अचानक ही बनदी। टपकत आँसू तपकत हियरा है सियरा, है अति कहति बिसारी दसा तनदी । दीन्ही पानि पान के सुपानि धरि अापने ही, जाने की प्रवीन बेनी बिथा वाके मनदी।
अधिकांश रीति काव्य है तो ब्रजभाषा में रचित परन्तु बुन्देलखण्डी का मी अमिट प्रभाव उस पर है, विशेषतया उन कवियों पर इसका बहुत अधिक प्रमाव पड़ा है जो बुन्देलखण्ड से घनिष्ट सम्बन्ध बनाये हुए थे। केशव, बिहारी, ठाकुर, प्रतापसिंह के अतिरिक्त बुन्देलखण्डी शब्दों की प्रचुरता बकसी हसराज कृत "सनेहसागर" में स्थान स्थान पर मिलेगी । ब्रजभाषा मर्मज्ञ लाला भगवानदीन ने उक्त ग्रन्थ का सम्पादन करते समय बुन्देलखण्ड के ठेठ और वहां के ग्रामीण अंचलों में बोले जाने वाले शब्दों पर पूर्ण विचार किया है।
मुझे यह कहने में संकोच नहीं कि प्रस्तुत कोश की रचना करते समय मैंने मूल ग्रन्थों में प्रयुक्त शब्दों का ग्रहण उनके अनुषंगों का पूर्ण ध्यान रखकर ही किया है तथा काव्यग्रन्थों में प्रयुक्त जिन शब्दों का प्रर्थ स्पष्ट नहीं था, उन्हें भरसक समझने का यत्न किया है और यत्न करने पर मो जहाँ कोई मार्ग नहीं मिला वहीं उन शबदों को त्याग देना पड़ा । बिना अर्थ और प्रसंग-विधान को समझे कल्पना के बल पर किसी शब्द को बलात् रखने का प्राग्रह कहीं भी लक्षित नहीं होगा। हां, यह पवश्य है कि जहाँ पूर्वी कोशकारों का कहीं भी सहारा नहीं मिला, वहाँ प्रसंग-संपुष्ट प्रथं को ग्रहण करने में मुझे किसी भी प्रकार की झिझक नहीं हुई।
शब्दों के ठीक अर्थ-बोध के साथ ही उनकी निरुक्ति की समस्याए कम जटिल न थी, पर मुझे हर्ष है कि अधिकांश स्थलों पर नागरी प्रचारिणी समा के "हिन्दी शब्द सागर" के अलावा "प्राकृत शब्द महाणंव" वी० एस प्राप्टे कृत संस्कृत अंग्रेजी कोश मोनियर विलियम्स कृत विशाल संस्कृत अंग्रेजी कोश, उर्दू हिन्दी कोश' एवं अंग्रेजी कोश से मुझे बहुत बड़ी सहायता मिली है। मैं एतदर्थ उक्त कोशों के सुविज्ञ एवं सुधी संपादकों का हृदय से आभारी हूँ। कोश में जहां निरुक्ति की ठीक दिशा ज्ञात नहीं हो सकी वहां अज्ञात सूचक चिह्नों द्वारा कोष्ठकों में इगित कर दिया गया है और यथा संभव प्रयुक्त छंद की पंक्तियों में कवि का नाम दे दिया गया है। किन्तु जहां कवि का नाम ज्ञात नहीं हो सका, वहां मूल नथ अथवा संग्रह प्रथ का उल्लेख मात्र कर दिया गया है । ठीक अर्थ
१. रसिक विनोद- चन्द्रशेखर बाजपेयी, पृ० ०२ प्रथम संकरण । २. नवरस तरङ्ग-बेनी प्रवीन पृ० १६, प्र० सं० ।
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