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जलेबदार
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३. भूपति भगीरथ के जस की जलूस, कंधौ प्रगटी तपस्या पूरी कँधो जन्हुजन की
- पद्माकर
जलेबवार संशा, पु० [फा०] मुसाहब उदा० प्रायो है बसन्त ब्रज ल्यायो है लिखाइ आली, जोन्ह के जलेबदार काम को करोरी है ।
-श्रालम
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जव संज्ञा, स्त्री० [सं०] तीव्रता, तेजस्विता, स्फूर्ति, शक्ति ।
उदा० देखिये जवन सोभा घनी जुगलीन माँझ नाम हूँ सौं नाती कृष्ण केसी को जहाँ न है । -सेनापति हाथ का एक अनेक आकृतियाँ गुथी
जवा - संज्ञा, पु० [सं० यव] आभूषण जिसमें नौ की रहती हैं । उदा हाथन लेत बिरी लटकें मखतूल के फूँदनि जोर जवाके । गंग जवारे संशा, पु० [० जवाल] निकट, पास २, जंजाल प्राफत ३. जौ के हरे अंकुर । उदा० देखे मतवारें गजराज न जवारें आवै, दई के सँवारे हो सवारे क्यों न भागहू गंग जबाल संज्ञा, पु. [अ० जवाल] प्राफ़त, बला, जंजाल ।
उदा० ज्वाल सों कला निधि जवाल सी जोन्हाई जोति सीसा को प्रवास यहाँ दावा सो दगत है । - चन्द्र शेखर जवोले- वि० [सं० जव = स्फूर्ति, शक्ति + हिं० ईला प्रत्यय ] शक्तिशाली, तेजस्वी, स्फूर्ति,
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सम्पन्न ।
उदा० नागरि नबेली नट नागर जवीले छैल कीन्ही चतुराई कोटि काटन कलेस की ।
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—नंदराम जसन – संज्ञा, पु० [फा० जशन] १. हर्ष, आनन्द
२. उत्सव ।
उदा० १. विष से बसन लागे श्राणि से प्रसन जारें जोन्ह को जसन कला मनहु कलप है ।
-दास श्रयश,
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जसना संज्ञा, अपयश |
पु० [सं० न + यश ]
उदा० सुभ माल प्रसून फनी इक सौं रिपु मित्र समान जसौ जसना । — सूरति मिश्र जहना- क्रि० प्र० [सं० जहन ] त्यागना, छोड़ना
२. नाश करना ।
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जामक
उदा० कहै पद्माकर परेहू परभात प्रेम पागत परात परमातमा न जहिये । पद्माकर जाँगरे - संज्ञा, पु० [देश० जाँगड़े] कीर्ति गायक, भाट, चारण ।
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उदा० जहँ जाँगरे करखा कहें अति उमँगि आनँद को लहैं । -- पद्माकर
जाग
१. जागृति,
-संज्ञा स्त्री० [सं० जागृति] जगना, उत्पन्न होना - यज्ञ । उदा० १. रघुनाथ मोहन विदेस गये जादिन सों तादिन सौ गुजरेटी बिरह की जाग में । - रघुनाथ चमकना,
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जागना - क्रि० सं० [सं० जागरण ] प्रकाशित होना ।
उदा० तहाँ जाइ सखियन के सँग पवि सोभा निरखन लागी । चन्द्रक चूर समान बालुका भानु किरनि सौं जागी । - सोमनाथ
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जाजर वि० [सं० जर्जरित] छेददार | उदा० काजर की रेख उर जाजर करति है ।
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- श्रालम
जाति-संज्ञा स्त्री० [सं०] पंक्ति, समूह, वर्ग । उदा० आँखै कुमोदिनि सी हुलसी मनि दीपनि दीपक दान की जाति सी । —रघुनाथ जादमा -संज्ञा, पु० [सं० यादव ] यादव, अहीर । उदा० भारी विषधर भोगी द्व जीभन बोल डोलै मी ह्रममा की जादपा की पाँच प्रा चली । - देव जान - संज्ञा, पु० [सं० यान] रथ, यान । उदा० अजित अजान भुज भुजग भोजन जान, दुभुज सम्हारो, जदु भूभुज भुलिख्या हों । — देव जापता-संज्ञा, पु० [अ० जाब्ता ] राजदरबार का कायदा, नियम ।
उदा
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श्राये दरबार बिललाने छरीदार देखि, जापता करनहार नेकहू न मनके ।
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जाबुक संज्ञा, पु० [हिं० जावक ] महावर । उदा० सखियानि सो देव छिपे न छिपाये लग्यौ अँखियानि मैं जाबुक सो । — देव जामक- -संज्ञा, पु० [सं० यामिक] १. रक्षक २. प्रहरी ।
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उदा० १. कवि तो वर करि भारती भाय
- भूषण जावक,
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जस जामक कौ करुणा भरें । - कुलपति मिश्र