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जामा ( ६२ )
जिल्लो जामा-संज्ञा, पु० [फा० जाम = वस्त्र] १. शरीर । जावक-संज्ञा, पु० [यावक] महावर, पैरों में २. वस्त्र ।
लगाया गया लाल रंग। उदा० १. जीरन जामा की पीर हकीम जी जानत उदा० कंचुकी सेत में जावक बिंदू बिलोकि मरै है मन की मनभावत ।
-बोधा ___ मधवानि की सूलन ।। -रसखानि जामिक - संज्ञा, पु० [सं० यामिक] प्रहरी, पहरा । जाहिवो-क्रि० प्र० [हिं० जाना] जाना, पहुँचना देने वाला।
प्रकट होना। उदा० नपुर रक्षाजंत्र मन लोचन गुनगन हार।
उदा० कोऊ कहै जाहिवो कठिन मृगराज सों ही जाचक जस पाठक मधुप जामिक बंदनमार।
कोऊ कहै ढाहिबो कठिन सत्रु गेह को । .. केशव
- ग्वाल जामिकी-संज्ञा, स्त्री० [फा० जामगी] पलीता,
जिजाना-संज्ञा, पु० [सं० ययाति] ययाति की वह बत्ती जिससे तोप के रंजक में आग लगाई
स्त्री, देवयानी, शुक्राचार्य की कन्या जो ययाति जाती है।
के साथ ब्याही गई थी। उदा० रंजक दै छाती धरी, जलद जामिकी बारि।।
उदा० कस्यप के तरनि, तरनि के करन जैसे, उदधि - चन्द्रशेखर
के इंदु जैसे भए यों जिजप्तता के । -गंग जामिनी रमन - संज्ञा, पु० [सं० यामिनीरमण] |
जिटिना-क्रि० अ० [हिं० जड़ना] जड़ना । चन्द्रमा ।
उदा. कन कन भरयो, सोई कन कन भरयो देव, उदा० तरनि मैं तेज बरनत 'मतिराम' जोति
जनु जगमगत जवाहिर जिटि रह.यो । जगमग जामिनो रमन मैं बिचारिये ।
- देव -मतिराम जितवना-क्रि० सं० [हिं० जताना] बताना, जाय-संशा, स्त्री॰ [सं० जाती] १. चमेली की
जताना । जाति का एक पुष्प, जाही २. मालती।
उदा चितवत, जितवत हित हिये, किय तिरीछे उदा० १. कर सिंगार बैठी हती जाय फल लिये
नैन । भीजै तन दोऊ कॅ4 क्यौ हूँ जप हाथ । पर बर मन ही मैं रहै कब घर
निबरैन ।
-बिहारी पावै नाथ ।
- मतिराम
जिरह-संज्ञा, स्त्री॰ [अ० जुरह] हुज्जत, पेंच जायन-संज्ञा, स्त्री॰ [सं जाया+-हिं० न]
खुचुर । विवाहिता स्त्री, पत्नी।
उदा० और प्रबलनि को बखान कहा कीजै यह बात उदा० जोइ जोइ जायन को भायन भयेई रहे. लोयन लगालग में वपुष बिसारेई ।
सुनि लीजै न कहति हौं जिरह की।
-रघुनाथ - ग्वाल
जिरी-संज्ञा, स्त्री० [अ० जिल्लत] १. दुर्गति, जारि-संज्ञा, पु० [हिं० जाल] जाल, पाश ।
दुर्दशा, कठिनाई २. अपमान, तिरस्कार । उदा० तहँ धीवर हो ब्रजराज गयो । मुरली स्वर
उदा० १. जानि कहावत है जग में जन जाने नहीं पूजन जारि छ ।
-बोधा जारी-संज्ञा, स्त्री० [सं० जार] १. व्यभिचार,
जम फॉसि जिरी को।
-देव पर स्त्री गमन २.जाल [संज्ञा, पु.]।
जिलाहे-संज्ञा, पु० [अ०जल्लाद] अत्याचारी, उदा० १.पाप कर जारी हमैं जोग जरतारी भेजी. जुल्मी । देई कहा गारी भलौ चीकनो घड़ा भयो। उदा० ज्वाला की जलूसन जलाक जंग जालिम की
-ग्वाल
जोर की जमा है जोम जुलम जिलाहे की। २. कंज कितै अंजन ये खंजन हैं जारी के ।
-पद्माकर -दुलह ! जिल्ली-सश
जिल्ली-संज्ञा, स्त्री० [सं० झिल्लि] १. चमक, जालदार-वि० [फा० जालदार] चमकदार, चिलक २. पीड़ा, टीस, चिलकन । चमकीला, प्रकाशमय ।।
। उदा० १ चक्रह तें चिल्लिन तें प्रल की बिजुल्लिन उदा. नीलम के हार जालदार की बहारकर सारी
तें, अम-तुल्य जिल्लिन तें जगत उजेरो सनी सोसिनी सँभारि कै करार पै।
-पद्माकर --ग्वाल २. कैसे ब्रजनाथ बिनु पावस बितैये जहाँ,
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