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अह तइओ ऊसासो
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समत्थ'- जीवलोअ-तत्तिणिवारगो, णाणाविह - तरु-लयापुप्फ-फल-गुम्म - विचित्त- तणोसहि उपायगो, णिज्जल-पएसेगजीवणाहारो, हालिएहिं अणिमिस-दिट्ठीए दिट्टिआ' चिरं विहीरिओ उन्भूओ पाउसिओ कालो । रोलंब - गवल - कालिआवि णयणाहिरामा, उट्टाविअ धूलि उक्केरा विणीरया, कयंधयारा वि उज्जोइअ - माणसा, चंचल - पयासावि लक्खिअ - अज्जंतुज्जलपयासा, कण्णजाह-भेचं थणंती वि अईव कण्णप्पिआ, पाईण-पवण- पेरिआ वि सज्जुक्का, उट्ठिआ अंबरम्मि कार्य - बिणी' | अज्जेव इयाणिमेव सव्वेसि संतुद्धिं करेमि त्ति वरिसिउ पउत्ता धारासारेण सा । जलजलाइ जायं सव्वओ सगयणं भूअलं । ण अम्हाणं संगहो रोअए इईव
१ समस्त जीवलोकत प्तिनिवारकः २ दृष्ट्या - सम्मदेनेत्यर्थः ३ प्रतीक्षित:
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