________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चौथा उच्छ्वास
प्रकृति का यह नियम त्रैलोक्य-विदित है कि जिस व्यक्ति की जैसी शुभअशुभ भावना होती है, वैसा ही उसे परिणाम मिलता है । जो प्रतिदिन रोग का चिन्तन करते रहते हैं, वे रोगी हो जाते हैं और जो आरोग्य की कल्पना करते हैं, वे स्वस्थ बन जाते हैं। वे मनुष्य कभी ऊँचे पद को प्राप्त नहीं कर सकते जिनके मन में सदा निराशा, दौर्बल्य और अपने आप में अविश्वास परिस्फुरित होता रहता है । 'हमारे जैसे व्यक्तियों के दिन बीत गए, अब तो हमें ज्यों-त्यों समय बिताना है । भविष्य में जब कोई अनुकूल अवसर प्राप्त होगा, तब कुछ करने की सोचेंगे'-इस प्रकार जो व्यक्ति निरंतर अपनी असमर्थता का अनुभव करते हैं वे कभी अपने प्रयोजन को पूरा नहीं कर पाते, उनका मनोरथ कभी फलित नहीं होता और उनके स्वप्न कभी साकार नहीं होते । जिनके विचार उदार हैं, कल्पनाएं कल्याणकारी हैं, जो सर्वाङ्गीण हित सोचते हैं और जिनका चित्त निर्मल है, वे सर्वत्र सुखी होते हैं, सुख उनके सम्मुख रहता है। आपत्ति में भी उनका आशारूपी निर्झर नहीं सूखता । भयानक रात्रि में भी उन्हें प्रभात दीखता है । उन्हें स्वतः दूसरों की अकल्पित सहायता प्राप्त होती हैं। इसलिए उत्साह सभी सफलताओं का मूल, कल्प
For Private And Personal Use Only