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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चौथा उच्छ्वास नाओं की क्रियान्विति के लिए कल्पवृक्ष, कामनाओं की पूर्ति के लिए कामकुभ और इच्छित वस्तु की प्राप्ति के लिए चिन्तामणि के समान है। ___ अनुकूल वातावरणों से प्रेरित होकर रत्नपाल ने मन्मन के घर से देशान्तर के लिए प्रस्थान किया। उस समय उसका आन्तरिक उत्साह बढ़ रहा था। अनेक साथी उसे घेरे हुए थे। गुरुजनों के आशीर्वाद को पा वह आश्वस्त था । स्तुतिकार मंगलमय वचनों से उसकी स्तुति कर रहे थे। उस समय वह स्वतः समुपस्थित शुभ शकुनों से वर्धापित हो रहा था। रास्ते में एक मालिन माथे पर फूलों की टोकरी लिए सामने मिली। 'देशान्तर जाने वालों के लिए यह अति शुभ शकुन है-ऐसा सोचकर रत्नपाल ने मन्मन द्वारा अर्पित लघु-मुद्रा को देकर तत्काल फूलों की टोकरी ले ली । उसमें दाडिम और धातकी के ताजे सुगन्धित फूल थे। ये शुभ हैं—ऐसा सोचकर विवेकी रत्नपाल ने उन्हें सुरक्षित रख लिया। परमेष्ठिपंचक का स्मरण करता हुआ अनेक मुनीमों के साथ गुरुजनों को प्रणाम करता हुआ जब वह नौका पर चढ़ने लगा तब एक अनुभवी स्थविर ने आकर कहा-'पुत्र ! जहां इच्छा हो वहाँ जाना । पूरे लाभ को प्राप्त करना । परन्तु 'कालकूट' द्वीप में कभी मत जाना, क्योंकि वहाँ जाने वाले वहाँ के धूर्त-शिरोमणियों से ठगे जाते हैं ।' अच्छा ! कहकर रत्नपाल ने उसकी बात स्वीकार की । नाविकों ने नौका चलाई । ज्यों-ज्यों वह आगे बढ़ी त्यों-त्यों वह गहरे पानी में चलती गई । ऊपर आकाश था, चारों ओर पानी पानी दीख रहा था। क्या सारी भूमि जल-जलाकार हो गई है ? ओह ! तत्वज्ञों के लिए सागर की स्थिति दर्शनीय होती है । 'सीमा का उल्लंघन न हो जाए'-इस प्रकार शंकित होकर आगे बढ़ने वाली लहरें मानों पुन: पीछे सरक जाती थीं। 'महान व्यक्तियों को शक्ति का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए'-- इस बात को व्यक्त करता हआ महान सामर्थ्यशाली और क्षण भर में सारे संसार को जलमग्न कर देने में समर्थ समुद्र मर्यादा में रहता है। इसीलिए आगमकारों ने तीर्थंकरों के लिए 'सागर की तरह गम्भीर' ऐसी उपमा दी है । 'दान देने से दानवीरों के धन में न्यूनता नहीं आती । समुद्र बड़े-बड़े बादलों के शून्य उदर को सतत भरता हआ भी कभी रिक्त नहीं होता' यह दिखाते हुए मानो वह ऊँची उछलती हई लहरों से शोभित होता है । समुद्र इस बात का साक्षी है कि वे ही व्यक्ति महामूल्य रत्नों और मुक्ताओं को पा सकते हैं जो निडर हो गहरे जल में जाने में समर्थ होते हैं और अपने प्राणों को हाथ में लेकर चलते हैं । जो व्यक्ति डरपोक हृदय वाले हैं और जो केवल सतह पर ही चलने वाले हैं वे इन रत्नों For Private And Personal Use Only
SR No.020603
Book TitleRayanwal Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
PublisherBhagwatprasad Ranchoddas
Publication Year1971
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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