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१ परिप्रोञ्चितम् ।
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रयणवाल कहा
मूलम्मि ठिओ झाणं झायइ, परमिट्ठ सुमिरइ, छुहं अहिआसेइ, सुहं सुहेण सीअकालं च जवेइ । तहेव उण्हालो विण भोईण मणुलोमो | जाहे पतवइ अइ तिग्ग-रस्सीहि अंसूमाली । वहि- सरिच्छा हवइ धरणो । सव्वंपि वायावरणं तातप्पामाण पवई असहणिज्जो मारुओ । वारं वारं परिफुसिअं' पण सुक्कत्तणमुवेइ सेअ - जलं । सुपीअपि उदयं ण कयाइ पीअं पिव अणुहवंति तम्हालुआई ओट्ट-तालुकंठ-विवराई । ताहे पत्त- समग्ग-भोग - सामग्गीओ णाणाविहं सीअ-पेज्जं पिबेंतो वायाणुकूलिअ - गिम्मि अल्लीणो सुकई को हम्मिअं
एउ चयइ ? तत्थवि मुणी जत्थ कत्थइ ठिओ, जं किमवि सीउण्हं भुजेंतो, उसिणं जलं पिबेंतो, तत्तभूमीअले वि अणत्थुअं सुतो, परममुइओ लक्खिज्जइ । केण अणुहविज्जइ गिम्ह-काल-तत्ती जो अणुवेलं सरेइ परमं पयं । जस्स सव्वंपि बाहिरं वत्थुजायं बाहिरं तस्स का सुहस्स दुहस्स वा कप्पणा ? अहो विचित्तो मुणीणमद्धाणो । तहेव पाउससमयो वि ण जेट्ठासमीहिं सुसहो, जया वासेंति पयोवाहा जया तया । हवंति पच्छण - रविबिबाणि दुद्दिणाणि । हिअयं कंपि कुणेमाणी विज्जोअइ विज्जू | गडगडायमाणो कण्णमूलं भिदेइ पुण थणिअ-सहो । पिच्छिला हवंति वत्तणीओ । सवेआओ वहति णिण्णआओ । अब्भंतरिओ वि अक्को अईव अंतरंग-गिम्मिं अणुहवावेइ जाउ, तम्मि को सुही जुवइजणविरहिओ चिट्टिउ खमो ? विहि-परतंतो पउत्थो वि कोइ गिहं संभरेइ रत्तिदिअहं । उक्किट्ठमंतव्वेअरणं माणेइ काइ
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