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रयणवाल कही च पत्ता । हरे ! एआरिसी का तुरा ? किमेत्थ पईवं' ? कहमुव्विग्गो जामायर-मणो ? आहओ णिअ-पासायम्मि ससिणेहं अत्ताए पुत्तसमाणो जामाया। साणुरोहं कहेउमाढत्ता-“दे जामायरं! ण कहं जीहिआ होइ दे जीहा गच्छेमि'त्ति कहेंती ? एआरिसी हलिद्दा-राय-सरिच्छा तुह पीई ! संपइ च्चिअ विवाह-कज्ज समत्तं, ण तस्स खेओ अहुणावहि उत्तरिओ, कहं गमण-पउत्ती पयालिआ तुमए । धी ! धी ! कि पवासूण सोहदं ? को तेसिं वीसासो ? को तेसिं संबंधो ? एमेव उत्तम्मइ तेहिं सद्धि मेत्ति जोएंतो । णो, ण संपई गमण-संबंधियं एगक्खरमवि जंपिअव्वं, पच्छा जहा-समयं सयं वयं तम्मि विसयम्मि चितिस्सामु'त्ति साहेमाणी सासू अंसुजलाउल-लोअणा जाया।
"णाहं एत्थ संपइ चिराएर खमोम्हि । पुब्वमेव मे कालाइवट्टणं जायं कय-णिन्छयाऽणुसारेणं । अस्थि मे तत्थ अच्चंतमावस्सयं किच्चं । अपत्ते मई विणटुंहोई तं सयलं, तम्हा किवाए मे एगागिणो पच्चावलणमणुमोइअव्वं संपइ । पच्छा जहाकालं पुणरवि अहमेत्थ सयराहमेव आगमिस्सं" पयडिग्रं सदक्खिण्णं रयणेण ।
एगागिणो गमणं 'ति सुणिऊण राया अईव जूरिओ जाओ । को वीसंभो पवासिणो, कया पच्छा आगच्छेच्ज ? पउत्थस्स का भाव-परिणई होइ 'त्ति केण णज्जइ ?
१ प्रतीपम् २ लज्जिता । लस्जेर्जीहिः (हे० ४-१०३) ३ उत्ताम्यति-खिन्नो
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