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राजविद्या । [१] विद्या के उपदेश से स्वार्थ को निराश को अश्रद्धा को और अपुरुषार्थ को छोड़ना चाहिये वह सब को जीत लेता है।
श्रीमत्परम पवित्र सोम पाठ ९ आय व्यय समीक्षणम् ॥ आय व्ययो प्रक्षणीयः आयद्वया यथा संभव: नाधिकः कर्तव्य प्रति समयेऽल्पाथवाऽ धिकं सुसुख संग्रह्यम् ॥ अल्पारि रक्षणम् ॥ आस्मञ्जगात तिस्त्रो गतयों भवन्ति वित्तस्य ॥ दानमुत्तम श्रेष्टगति सैव लभतेऽखण्डं प्रकाशमानं कीरतिः सुखमब्ययम्। मध्यमम् भोगः तृतियम् धोगात नाशः ॥ स्वार्थ ठुख भोगेश्वर्याधिक्तायुसं क्षतिजयते यतः प्रकृति नियमः पुर्व प्रारब्ध सचित कर्मानुसार शरीरं न्यूनाधिक
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