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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [८०] राजविद्या। धान पत्ता (पान) डांकला शाग रूइ बीज फल पुष्पादि बीस लाभ है। वन से पुष्प जड़ औषधी छाल आदि बीस ॥ वृक्ष बनस्पति आदि से प्राप्त होये हुरे लकडी फल फूल गूंद सेहत आदि बीस लाभ है खान से २८ अठाइस है पशू आदि से सेंतीस लाभ है | और लाग बहाग छतीत है। पृथिवी जल तेजादि से यंत्र कला कौशलम् तरह २ के विमान और आकाश में चलने वाले अस्त्राः॥ समय (वक्त) ही बड़ा भारी खजाना है जो वह वृथा में बिताया जाय ।। दिशावों से चाहे जिधर चलने का लाभ || अपणी आत्मा का स्वार्थ और अल्प मुख से तुच्छ (छोटीन करना चाहिये ॥ परमार्थ सेवा परम पवित्र बडी सबसे उत्तम मानी गई है ।। मनको उत्माह को बड़ाना चाहिये तिससे वह परम लाभ है । येही नव खजानें है ।। नव कोष-अन्न कोष-वस्त्र-मणि मुकतादि-भण्डार धन-तेल घृत रसादि तृणागारविविध वस्तव शस्त्रास्त्र युद्ध सामग्रीयः ॥ राज For Private And Personal Use Only
SR No.020594
Book TitleRajvidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbramhachari Yogiraj
PublisherBalbramhachari Yogiraj
Publication Year1930
Total Pages308
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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