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( xii ) डॉ. तैस्सितौरी ने नागर अपभ्रंश और डिंगळ तथा गुजराती के बीच में पुरानी पश्चिमी राजस्थानी (जूनी गुजराती) को माना है, जिसे सारे गुजरातो विद्वान् सहर्ष स्वीकार करते हैं तथा इसी से आधुनिक गुजराती और आधुनिक राजस्थानी का उद्भव हुअा है। इस प्रकार हम देखते हैं कि हिन्दी का कोई सीधा सम्बन्ध राजस्थानी से नहीं है ।
राजस्थान में प्रयुक्त डिंगळ और पिंगळ भाषानों के सम्बन्ध में भी थोड़ा विचार करने की आवश्यकता है। पिंगळ के भाषाकीय स्वरूप को देखते हुये ऐसा प्रतीत होता है कि प्रारम्भ में यह एक शैली विशेष और तत्पश्चात् एक स्वतन्त्र भाषा के रूप में निखरी होगी। कुछ भी हो, आज ये दोनों पृथक शैलियाँ न होकर स्वतन्त्र भाषायें हैं । डिंगळ निश्चय ही पिंगळ से प्राचीन है, अतएव डिंगल के अनुकरण पर नामाभिधान होना सुसंगत लगता है । डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी और अनेक देशी तथा विदेशी विद्वानों का यही मत है। वास्तव में ब्रज मिश्रित राजस्थानी से उत्पन्न एक नई भाषा का नाम पिंगळ पड़ा। वैसे कृष्ण भक्ति के कारण राजस्थान ब्रज भाषा का भी प्रेमी रहा है । ब्रजभाषा के अनेक प्रसिद्ध और श्रेष्ठ कवि राजस्थान के भी रहे हैं।
राजस्थानी का प्राचीन नाम मरुभाषा है। भारतीय भाषा भगिनियों में अति प्राचीन और समृद्ध मरुभाषा का उद्गम वि. सं. ८३५ से भी बहुत पूर्व का है। वि. सं. ८३५ में भूतपूर्व मारवाड़ राज्यान्तर्गत जालोर नगर में मुनि उद्योतन सूरि रचित कुवलयमाला में वर्णित १८ भाषाओं में मरु भाषा का उल्लेख इस बात का पुष्ट प्रमाण है कि इस भाषा का साहित्य इससे भी पूर्व का रहा है
'अप्पा-तुप्पा' भगिरे बह पेच्छइ मारुतत्तो 'न उरे भल्ल उ' भरिगरे ग्रह पेच्छइ गुज्जरे अवरे 'प्रम्ह काउं तुम्ह' भगिरे अह पेच्छइ लाडे भाइ य इ भइणी तुब्भे भणिरे प्रह मालवे दि?
(कुवलयमाला) इसका प्राणवान व सशक्त वीर रसोय साहित्य कालानुसार अतिशयोक्तिपूर्ण होते हुये भी बेजोड़ तथा भारतीय साहित्य को एक अमूल्य धरोहर है, जिसे राजस्थान वासियों ने अपने रक्तदान से सिंचित व पल्लवित किया था। विश्व कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर तो इस काव्य के कुछ प्रोजस्वी अंशों को सुनकर इतने प्रभावित हुये कि उन्होंने मुक्तकंठ से इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की।
अनेक सम्प्रदायों (रामसनेही, जसनाथी, विश्नोई, दादूपंथ, निरंजनी आदि) के प्रवर्तक सिद्ध-महात्मा और मीरा, पृथ्वीराज आदि शताधिक भक्तों को रसप्लावित धारा ने इस प्रदेश को ही नहीं, देश के समूचे भक्तिकाल को
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