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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८९ मुदर्शिनीटीका अ०३ सू० २१ अध्ययनोपसंहारः तदनुसारेणैव ‘णायकुलनंदणो' ज्ञातकुलनन्दनः सिद्धार्थकुलानन्दकरः ' महप्पा' महात्मा परमात्मरूपः 'जिणो' जिनो-रागद्वेष विजेता 'वीरवरनामधेज्जो' वीरवरनामधेय: प्रख्यातनामा भगवान् महावीरः 'अदिण्णादाणस्स' अदत्तादानस्य फलविवाग ' फलविपाक ' कहेसी' कथितवान् । एवं तं' तत् पूर्वोपदर्शित स्वरूपम् , ' तइयपि अदिण्णादाणं ' तृतीयमप्यदत्तादानं-'हर-दह-मरण-कलुस -तासण-परसंतिगिज्झलोभमूलं' हर-दह-मरण-कलुष-त्रासनपरसत्कग्राह्यलोभ. मूलम् , तत्र 'हर' इति हरण परद्रव्यापहरणं, 'दह' दहनंदाहः-हृदयसन्तापः, 'मरणं ' मृत्युः, 'कलुस' कलुष-मनोमालिन्यं, 'तासण' त्रासनंबासः-अकस्माद्भयम् ‘परसंतियगिज्झलोभ' परसत्कग्राह्यलोभः परवस्तुग्राहको लोभः, एतेषां मूलं-मूलकारणमिदमदत्तादानम् । एवं ' जाव' यावत्-यावच्छन्देन द्वितीयालीकतीर्थंकरों ने इस अदत्तादान का ऐसा ही फल कहा है तथा उन्हीं तीर्थकरों के अनुसार (णायकुलनंदणो ) ज्ञातकुलनंदन-सिद्धार्थ के कुलको आनंद कारक (महप्पा) परमात्मरूप (जिणो) रागवेष विजेता ( वीरवरनामधेजो) श्री भगवान महावीर ने भी (अदिण्णादाणस्स ) इस अदत्तादान का ( फलविवागं ) ऐसा ही फल (कहेसी) कहा है । ( एवं ) इस प्रकार (तं) पूर्वोपदर्शित स्वरूपवाला यह (तहयंपि) तीसरा अदत्तादान भी (हर-दह-मरण-कलुस-परसंतिगिज्जलोभमूलं ) (हर ) परद्रव्य का हरण करना, (दह ) हृदय में संताप पहुँचाना, ( मरण ) मृत्यु ( कलुस ) मनोमालिन्य (नासण) अकस्मात् भय होना, ( परसंतिगिज्झ लोभमूलं ) दूसरे की वस्तु का हरण कराने वाला लोभ, इन सबका मूल कारण यह अदत्तादान है। यहां पर " एवमासु" मव माहिती | 24॥ महत्ताहीनतुं मायूँ । ५१ ४ छ तथा ते ताप रोना प्रमाणे " णायकुलनंदणो" aliga ननसिद्धार्थना गुगने मानहाय " महप्पा" ५२मात्म ३५, “जिणो" रागद्वेष विता, “वीरवरनामधेजो” श्री भगवान महावी२ ५Y " अदिण्णादाणस्स" मा सत्ताहानतुं "फ ठविधाग" मे ३१ डिस. "एवं" मा प्रमाणे " तं" पूपिशित २५३५वा ते " तइयंपि" श्री महत्ताहान ५ " हर-दह-मरण-कलुस-तासग-परसंति गिज्झ लोभमूलं " " हर" ५२ यर्नु २९५ ४२. “ दह" यमा सत!५ ५ यावे!, “ मरण" मृत्यु, “ कलुस" भननी मसिनता, "णसण" ५४मात लय वो, " परसंतिगिज्झ लोभमूलं" For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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