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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ प्रश्नव्याकरणसूत्रे खिलभूमिवल्लराणि-क्षेत्राणि-असिद्धानि खिलभूमया हलाऽकृष्टभूमयः वल्लराणि= क्षेत्रविशेषाव तानि 'उत्तणघणसंकडाई उत्तणघनसंकटानि-तत्रउत्तणैः उद्गतः घासैः घनम् अतिशयं संकटानि व्यापनियानि तानि 'डझंतु ' दह्यन्तां भस्मीभूतानि क्रियताम् । रुक्खा' वृक्षाः 'मूडिज्जंतु' मूड्यन्तां = मूलत उन्मूल्यन्ताम् । 'जंताई' यन्त्राणि = तिलेक्षुसर्षपादिपीडनयन्त्राणि 'भिज्जंतु ' भिन्दन्तु । किममित्याह---' भांडाइयस्स ' भाण्डादिकस्य भाण्ड पात्रादेः 'उबहिस्स' उपधेः= उपकरणस्य ' कारणाए ' कारणाय-अयोजनाय । तथा 'बहुविहस्स' बहुविधस्य 'अनेकप्रकारस्य 'अट्टाए ' अर्थाय वक्ष्यमाणप्रयोजनस्य 'सिद्धये 'उच्छु' इक्षवः 'दुज्जंतु ' दूयन्तां छिद्यन्तां तिलाय ' तिलाश्च ‘पीलिज्जंतु' पीड्यन्तां-निष्पीडयन्तां यन्त्रे । तथा मम ‘घरद्वए' गृहार्थाय गृहनिर्माण योजनाय 'इट्टयाओ' इष्टकाः= ईट' इति प्रसिद्धाः ‘पचावेह' पाचयत । 'खेत्ताय कसह कसावेह' नौकर चाकरों से काम कराओ वे ( गहणाई वगाइं ) गहन वनों को, (खित्तखिलभूमिवल्लराई) खेतों को, हलाकृष्टभूमिको-वल्लरों-खेतविशेषों को (उत्तणघणसंकडाइं ) घास आदिसे व्याप्त है, (डझंतु) उनमें आग लगाकर वहांकी भूमिको साफ करें ( रुक्खा सूडिज्जंतु ) वहां जितने भी वृक्ष खडे हों उन्हें जड़मूल से उखाड़ डालें ( जंताई भिजंतु) तिल इक्षु आदि के पीलनेके यंत्रोंको ये चीर फाड़ डालें कि जिससे ( भांडायइस्स उवहिस्स कारणाए) भांड पात्र आदि उपकरण बनाये जा सकें । तथा (बहुविहस्स अट्टाए उच्च दुज्जंतु ) अनेक विध प्रयोजनों की सिद्धि निमित्त ये इक्षु-गन्ना को काटें, (तिला य पोलिज्जंतु घरट्ठयाए) तिलों को पानी में पिले तथा (इयाओ पयावेह ) गृह निर्माण के लिये ये ईटों को पकायें, (खेत्ता य कसह कसावेह) खेतों को जोते व जुतवावें = हाकना और हकवाना चोकना और चोकवाना ना४२ या पाले ४४५ ४२रायो, “गहणाई वणाई” गाउन पनीने, “वित्तखिलभूमि वल्लराइं" मेत३१, १२! ( ४ानु मेतर) " उत्तणघणसंकडाई" घास माहिया पाये छ, " डझंतु " तम या गाडीनते भीनने साई ४२रावो, " रुक्खा सूडिज्जंतु " त्या क्ष वृक्षो छ भने ५ भूमाथी उमेडी नामो, “ जंताई भिज्जंतु' तस, शे२४ी मासिवाना यत्राने तेमे। तोड़ी ही ना थी " भांडाइयस्स . उबहिस्स कारणाए" wis, पात्र माह साधना मनापी २४ाय तथ! " बहुविहस्स अट्टाए उच्छ्र दुज्जंतु ” मने २॥ प्रयोगबनी सता भाटे तो शेरीने पे तिलाय पीलिज्जंतु घरट्याए" तसने घासीमा पीa, तथा " इत्याओ पयावेह" ५२ धावाने भादट पाये, “ खेत्ता य कसह कसावेह" मेतरे। 3 अने डावे, तथा For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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