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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शिनी टीका म० २ सू० १३ मृषावादिना जीवघातकवचननिरूपणम् २२९ क्षेत्राणि च ' कस' कर्षत-कर्षयत वा । तथा 'अडवीदेसेसु' अटवी देशेषु बन प्रदेशेषु 'गामनगरखेडकब्बडे' ग्रामनगरखेटकबटानि-तत्र ग्रामश्च नगरं च प्रसिद्ध खेटं च-नद्यादिवेष्टितं धूलिप्राकाररहितं कटं च-कुत्सितजननिवासस्थानम् , तानि कीदृशानीत्याह-विउलसीमे' विपुलसीमानि-विस्तीर्णसीमायुक्तानि ' लहु' लघु-सुन्दररोत्या शीघ्रं वा 'संनिवेसेह' सन्निवेशयत=निवासयत तथा 'पुप्फाणि फलाणि य' पुष्पाणि फलानि च 'कंदमूलाई कन्दमूलानि तत्र कन्दा स्वर्णकन्दशर्कराकन्दलशुनादयः मूलानि वृक्षमूलकानि 'कालपत्ताई' कालपाप्तानि उचितसमयलब्धानि 'गिण्ह' गृह्णीत-ग्रहणं कुरुत, तथा ' परिजणस्स ' परिजनस्य कुटुम्बस्य, 'अट्ठाय' अर्थाय प्रयोजनाय सञ्चयं करेह ' कुरुत ।। मू०१३ ॥ तथा ( अडवीदेसेसु गामनगरखेडकब्बडे विउलसीमे लहु संनिवेसेह ) ग्राम, नगर, खेट, कर्बट आदि स्थानोंको विस्तृत सीमायुक्त कर के अटवी देशोंमें सुन्दर रीति से शीघ्र बसावें, (पुप्फाणि फलाणि य कंदमूलाई कालपत्ताई गिण्ह ) तुम लोग ( कालपत्ताई ) कालप्राप्त फूले हुए (पुप्फाई ) फूलों को ( फलाणि ) पके हुए फलों को तथा ( कंदमूलाई ) पके हुए स्वर्णकन्द, शर्कराकंद, लहसुन आदि कंदों को और पिप्पलीमूल आदि मूलों को ( गिण्ह ) ले आया करो, तथा ( करेह संचयं परिजणस्स अट्ठाए ) कुटुम्ब के लिये धन आदि का संचय कर रख जाओ। भावार्थ-ये असत्यवादीजन दूसरे व्यक्ति हमसे प्रसन्न रहें इसलिये सुहाती बातें उनसे कहते रहते हैं । इनका परिणाम क्या होगा ? इसका वे जरा सा भी ध्यान नहीं रखते । जो ऊँट पालते हैं अथवा ऊँटसे जो " अडवीदेसेसु गामनगरखेडकब्बडे विउलसीमे लहु संनिवेसह " :भ, न१२, બેટ, કબૂટ, આદિ સ્થાને વિસ્તૃત સીમાવાળાં કરીને ઉજજડ પ્રદેશમાં સુંદર शते ७५थी: वसावे, “पुष्पाणि फलाणि य कंदमूलाई कालपत्ताई गिण्ह" तमे सोछ। "कालपत्ताई" विसवाने समय मावतi विसेस " पुप्फाई" टोने “फलाणि " पासा जाने तथा “ कंदमूलाई" पासi २१४४-४-२४ीयां લસણ આદિ કંદને તથા પિપ્પલી મૂળ આદિ મૂળોને “ઇ” લઈ આવ્યા ४२, तथा “ करेह संचयं परिजणस्स अट्टाए” १५ महिने भाटे धन આદિને સંચય કર્યા કરો” એ પ્રકારની સલાહ આપ્યા કરે છે. ભાવાર્થતે અસત્યવાદી લેકે બીજા લેકેને ખુશ કરવાને માટે તેમને ગમે તેવી વાતે તેમની સાથે કર્યા કરે છે. પણ તેનું શું પરિણામ આવશે? તે બાબતનો તેઓ જરા પણ વિચાર કરતાં નથી. ઊંટ પાળનારને અથવા ઊંટનો For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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