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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् न्यायकन्दली भिद्यते” इति । विशेषगुणोच्छेदे हि सत्यात्मनः स्वरूपेणावस्थानं नोच्छेदः, नित्यत्वात् । न चायमपुरुषार्थः, समस्तदुःखोपरमस्य परमपुरुषार्थत्वात् । समस्तसुखाभावादपुरुषार्थत्वमिति चेत् ? न, सुखस्यापि क्षयितया बहुलप्रत्यनीकतया च साधनप्रार्थनाशतपरिक्लिष्टतया च सदा दुःखानान्तस्य विषमिश्रस्येव मधुनो दुःखपक्षे निक्षेपात् । केषां साधर्म्यवैधर्म्यतत्त्वपरिज्ञानमपवर्गकारणमित्यपेक्षायां द्रव्यादीनामिति सम्बन्धः। द्रव्याणि च, गुणाश्च, कर्माणि च, सामान्यञ्च, विशेषाश्च, समवायश्चेति विभागवचनानुसारेण विग्रहः, उद्देशस्य विभागवचनेन समानविषयत्वात् । आदौ द्रव्यस्योद्देशः, सर्वाश्रयत्वेन प्राधान्यात् । गुणानाञ्च कर्मापेक्षया भूयस्त्वाद् द्रव्यानन्तरमभिधानम् । नियमेन गुणानुविधायित्वात् कर्मणां गुणानन्तरमुद्देशः। कान्वितत्वात् सामान्यस्य कर्मानन्तरमभिधानम् । पञ्च पदार्थवृत्तेः समवायस्य सर्वशेषेणाभिधाने प्राप्त विशेषाणां मध्ये कथनम् । पक्ष से भिन्न नहीं है ।" क्योंकि विशेष गुणों के नष्ट हो जाने पर आत्मा का अपने स्वरूप में रहना आत्मा का नाश नहीं है । (और उसका नाश हो भी नहीं सकता है, क्योंकि) वह नित्य है । यह आत्यन्तिक दुःखनिवृत्तिरूप मोक्ष जीवों का अकाम्य भी नहीं है, क्योंकि यह दुःखों का अत्यन्त विनाशरूप है, अतः जीवों का परम अभीष्ट है । (प्र०) यह (मोक्ष) सभी सुखों का भी निवृत्तिरूप होने के कारण जीवों का काम्य नहीं है ? (उ०) नहीं, क्योंकि सुख भी विनाशशील अनेक विघ्नों से ओतप्रोत, अनेक कठिन उपायों से उत्पन्न होने के कारण अनेक दुःखों से आक्रान्त होने से त्याज्य ही है। जैसे विष से मिला हुआ मधु भी ग्राह्य नहीं होता। (प्र०) किन पदार्थों के साधर्म्य और वैधर्म्यरूप तत्त्व का ज्ञान मोक्ष का कारण है ? इस आकाङ्क्षा की पूर्ति के लिए "द्रव्यगुणकर्मसामान्यविशेषसमवायानां षण्णां पदार्थानाम्" इस वाक्य का उपादान है। पदार्थों के विभागवाक्य के अनुसार उक्त द्वन्द्वसमासान्त वाक्य का विग्रह “द्रव्याणि च, गुणाश्च, कर्माणि च, सामान्यञ्च, विशेषाश्च, समवायश्च” इस प्रकार का है। क्योंकि 'उद्देश' वाक्य में प्रयुक्त पदार्थबोधक पद की विभक्ति का वचन विभागवाक्य के अनुसार होना चाहिए। द्रव्य सभी पदार्थों का आश्रय है, अतः सर्वप्रधान है। इस कारण उसका उल्लेख सबसे पहिले है । गुण कर्म से संख्या में अधिक हैं, अतः द्रव्य के बाद और कर्म से पहिले गुणों का उल्लेख है। कर्म नियमतः गुणों के साथ ही रहता है, अतः गुण के बाद कर्म का निरूपण है। कर्म के साथ रहने के कारण कर्म के बाद सासान्य का निरूपण किया है । समवाय द्रव्यादि पाचों पदार्थों में रहता है, सुतरां उसका निरूपण सबसे पीछे होना उचित है । अतः सामान्य निरूपण के बाद और समवाय से पहिले बीच में 'विशेष' का निरूपण किया है। For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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