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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [उद्देश प्रशस्तपादभाष्यम् तच्चेश्वरचोदनाभिव्यक्ताद्धादेव । उस 'निःश्रेयस' (या अपवर्ग) की प्राप्ति ईश्वर की विशेष प्रकार की इच्छा से कार्य करने में उन्मुख हुए धर्म से ही होती है । न्यायकन्दली अभावस्य पृथगनुपदेशो भावपारतन्त्र्यात्, न त्वभावात् । द्रव्याणामिति सम्बन्धे षष्ठी । अत्रापि साधादिज्ञानस्य निःश्रेयसहेतुत्वे कथिते द्रव्यादिज्ञानस्य कथितम्, साधर्म्यवैधर्म्ययोः स्वातन्त्र्येण ज्ञानाभावात् । ननु यदि तत्त्वज्ञानं निःश्रेयसहेतुस्तहि धर्मो न कारणम् ? ततः सूत्रविरोधः-"यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः" इति, तत आह-"तच्चेश्वरचोदनाभिव्यक्ताद्धर्मादेवेति । तन्निःश्रेयसं धर्मादेव भवति, द्रव्यादितत्त्वज्ञानं तस्य कारणत्वेन निःश्रेयससाधनमित्यभिप्रायः। तत्त्वतो ज्ञातेषु बाह्याध्यात्मिकेषु विषयेषु दोषदर्शनाद्विरक्तस्य समीहानिवृत्तावात्मज्ञस्य तदर्थानि कण्यिकुर्वतस्तत्परित्यागसाधनानि च श्रुतिस्मृत्युदितान्यसङ्कल्पितफलान्युपाददानस्यात्मज्ञानअभावों को स्वतन्त्र रूप से न कहने का यह अभिप्राय नहीं है कि वे हैं ही नहीं, न कहने का अभिप्राय केवल इतना ही है कि अभाव भावपरतन्त्र हैं। (अर्थात् "द्रव्यगुणकर्मसामान्य विशेषसमवायानाम्" इस समस्त वाक्यघटक पदरूप) 'द्रव्याणाम् इत्यादि पदों में सम्बन्धसामान्य में षष्ठी विभक्ति है। "साधर्म्यवैधय॑तत्त्वज्ञानं निःश्रेयसहेतुः” इस वाक्य से यद्यपि द्रव्यादि पदार्थों के साधर्म्य और वैधर्म्यरूप तत्त्व के ज्ञान में ही मुक्ति की कारणता कही गयी है, तथापि द्रव्यादिविषयक ज्ञानों में भी मुक्ति की कारणता उसी वाक्य से कथित हो जाती है, क्योंकि द्रव्यादि रूप धमियों के ज्ञान के बिना उनके साधय और वैधर्म्यरूप तत्त्वों का ज्ञान असम्भव है। __ अगर मोक्ष का कारण (साधर्म्यवैधर्म्यरूप) तत्त्व का ज्ञान ही है, तो फिर 'धर्म' उसका कारण नहीं है । किन्तु ऐसा मान लेने पर सूत्र का विरोध होता है । क्योंकि सूत्रकार ने कहा है कि-'यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः” । इसी विरोध को मिटाने के लिये भाष्यकार ने "तच्चेश्वरचोदनाभिव्यक्ताद्धादेव" यह वाक्य कहा है । अभिप्राय यह है कि 'तत्' अर्थात् मोक्ष, धर्म से ही (उत्पन्न) होता है । किन्तु द्रव्यादि तत्त्वज्ञान धर्म का कारण है, अतः परम्परा से मोक्ष का भी कारण है । पदार्थों के यथार्थज्ञान से बाह्य और आभ्यन्तर सभी वस्तुओं में ('ये सभी दुःख के कारण हैं। इस प्रकार की) दोष-बुद्धि उत्पन्न होती है । इस दोष-बुद्धि से वैराग्य की उत्पत्ति होती है और वैराग्य से उस पुरुष की सारी अभिलाषायें निवृत्त हो जाती हैं। फिर वह व्यक्ति अभिलाषाओं के पोषक सभी उपायरूप कम्मों को छोड़ देता है तथा अभिलाषा से पिण्ड छुड़ानेवाले वेद धर्मशास्त्रादि ग्रन्थों में कथित For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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