SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 821
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७४६ www.kobatirth.org न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् प्रशस्तपादभाष्यम् Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ सामान्यनिरूपण अपरं द्रव्यत्वगुणत्व कर्मत्वादि अनुवृधिव्यावृत्तिहेतुत्वात् सामान्यं विशेषश्च भवति । तत्र द्रव्यत्वं परस्परविशिष्टेषु पृथिव्यादिष्वनुवृत्तिहेतुत्वात् सामान्यम्, गुणकर्मभ्यो व्यावृत्तिहेतुत्वाद् विशेषः । तथा गुणत्वं परस्परविशिष्टेषु रूपादिष्वनुवृत्तिहेतुत्वात् सामान्यम, द्रव्यकर्मभ्यो व्यावृत्तिहेतुत्वाद् विशेषः । तथा कर्मत्वं परस्परविशिष्टेषूत्क्षेपणादिष्वनुवृत्तिप्रत्यय हेतुत्वात् सामान्यम, द्रव्यगुणेभ्यो द्रव्यत्व, गुणत्व, कर्मत्वादि जातियाँ अपर है । ये अनुवृत्तिप्रत्यय के कारण होने से 'सामान्य' और व्यावृत्तिप्रत्यय के कारण होने से 'विशेष' दोनों ही । इनमें द्रव्यत्व परस्पर विभिन्न पृथिवी प्रभृति नौ द्रव्यों में से प्रत्येक में 'यह द्रव्य है' इस एक आकर की प्रतीति के हेतु होने से सामान्य ' है, एवं उन्हीं नौ द्रव्यों में से प्रत्येक में 'यह गुण और कर्म से भिन्न है' इस व्यावृत्तिबुद्धि के हेतु होने से 'विशेष' भी है । इसी प्रकार गुणत्व भी रूपादि चौबीस गुणों में से प्रत्येक में "यह गुण है' इस एक आकार के प्रत्ययों का हेतु होने से 'सामान्य' है एवं 'ये रूपादि द्रव्य और कर्म से भिन्न हैं, इस व्यावृत्तिबुद्धि का कारण होने से 'विशेष' भी है । इसी प्रकार कर्मत्व जाति भी उत्क्षेपणादि विभिन्न क्रियाओं में से प्रत्येक में 'यह क्रिया है' इस अनुवृत्तिप्रत्यय का कारण होने से सामान्य है, एवं उत्क्षेपणादि क्रियाओं में से प्रत्येक में यह द्रव्य और गुण से भिन्न है' इस व्यावृत्तिबुद्धि का कारण न्याकन्दली कर्मत्वं परस्परविशिष्टेषूत्क्षेपणादिष्वनुवृत्तिप्रत्ययहेतुत्वात् सामान्यं द्रव्यगुणेभ्यो व्यावृत्तिहेतुत्वाद् विशेषः । द्रव्यत्वादिवत् पृथिवीत्वादीनामप्यनुवृत्तिव्यावृत्तिप्रत्ययहेतुत्वात् सामान्यविशेषभावोऽस्तीत्याह - एवमिति । प्राणिगतानि सामान्यानि गोत्वाश्वत्वादीनि अप्राणिगतानि घटत्वपटत्वादीनि । किं द्रव्यत्वादीनां सामान्य For Private And Personal अनुवृत्तिप्रतीति का कारण है. अतः सामान्य है । एवं द्रव्य और कर्म इन दोनों से 'गुण भिन्न है' ( क्योंकि वह गुण है ) इस व्यावृत्तिबुद्धि का भी कारण है, अत: 'विशेष' भी है । इसी प्रकार परस्पर विभिन्न उत्क्षेपणादि क्रियाओं में 'ये कर्म हैं' इस समान आकार की प्रतीति ( अनुवृत्तिप्रत्यय ) कर्मत्व से होती है, अतः वह सामान्य है और उन्हीं कर्मों में 'ये द्रव्य और गुण से भिन्न हैं' इस व्यावृत्ति बुद्धि की हेतु होने से 'विशेष' भी है । 'एवम्' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा द्रव्यत्वादि जातियों की तरह पृथिवीत्वादि जातियों में भी कथित सामान्यविशेषभाव का अतिदेश करते हैं । गोत्व, अश्वत्व प्रभृति
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy