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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ७४७ प्रेकरणम्] भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् व्यावृत्तिहेतुत्वाद् विशेषः। एवं पृथिवीत्वरूपत्वोत्क्षेपणत्वगोत्वघटत्वपटत्वादीनामपि प्राण्यप्राणिगतानामनुवृत्तिव्यावृत्तिहेतुत्वात् सामान्यविशेषभावः सिद्धः । एतानि तु द्रव्यत्वादीनि प्रभूतविषयत्वात प्राधान्येन सामान्यानि, स्वाश्रयविशेषकत्वाद भक्त्या विशेषाख्यानीति । होने से 'विशेष' भी है। इसी प्रकार प्राणियों में रहनेवाले और अप्राणियों में रहनेवाले पृथिवीत्व, रूपत्व, उत्क्षेपणत्व, गोत्व, घटत्व, पटत्व प्रभृति जातियों में भी अनुवृत्तिप्रत्ययजनकत्व हेतु से सामान्यत्व और व्यावृत्तिप्रत्ययजनकत्व हेतु से विशेषत्व की सिद्धि समझनी चाहिए। द्रव्यत्वादि जातियाँ सामान्य के पूर्णलक्षण से युक्त होने के कारण वस्तुतः सामान्य ही हैं। किन्तु अपने आश्रयों को अपने से भिन्न वस्तुओं से पृथक् रूप में समझाने की योग्यता भी उनमें किसी अंश में संघटित होती है, अतः उनमें 'विशेष' शब्द का भी गौणप्रयोग होता है। न्यायकन्दली स्वरूपं वास्तवम् ? किं वा विशेषस्वरूपता ? आहोस्विदुभयस्वरूपता ? अत्राहएतानीति । समानानां भावः सामान्यमिति सामान्यलक्षणं द्रव्यत्वादिषु विद्यते, स्वाश्रयं सर्वतो विशिनष्टीति विशेष इति तु लक्षणं नास्ति। अत एतानि मुख्यया वृत्त्या सामान्यान्येव न विशेषाः, विशेषसंज्ञां तूपचारेण लभन्ते । विशेषो हि स्वाश्रयं सर्वतो विशिनष्टि, द्रव्यत्वादिकमपि विजातीयेभ्यः स्वाश्रयस्य विशेषणमित्येतावता साधयेणोपचारप्रवृत्तिः। प्राणियों में रहने वाली जातियां हैं. एवं घटत्व, पटत्व प्रभृति अप्राणियों में रहनेवाली जातियाँ हैं। (प्र. ) ( द्रव्यत्वादि सामन्य और विशेष दोनों कहे गये हैं) इस प्रसङ्ग में प्रश्न उठता है कि वे वास्तव में 'सामान्य' रूप हैं ? या वास्तव में वे 'विशेष' रूप ही हैं ? अथवा उनके दोनों ही स्वरूप वास्तव हैं ? इन्हीं विकल्पों का समाधान 'एतानि' इत्यादि ग्रन्थ से दिया गया है। अर्थात् 'समानानां भावः सामान्यम्' सामान्य का यह लक्षण द्रव्यत्वादि में पूर्ण रूप से है, किन्तु 'स्वाश्रयं सर्वतो विशिनष्टीति विशेषः' ( जो अपने आश्रय को इतर सभी पदार्थों से अलग करे, वही विशेष' है) विशेष का यह लक्षण द्रव्यत्वादि में नहीं है (क्योंकि दव्यत्वादि अपने आश्रयीभूत एक द्रव्य व्यक्ति से अपने आश्रयीभूत दूसरी द्रव्य व्यक्ति को अलग नहीं समझा सकता), अतः द्रव्य त्वादि जातियाँ 'सामान्य' शब्द के ही मुख्यार्थ हैं। उनमें 'विशेष' शब्द का लक्षणावृत्ति से ही प्रयोग होता है। अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार 'विशेष' पदार्थ अपने आश्रय को इतर सभी पदार्थों से अलग रूप में रखता है, उसी प्रकार द्रव्यत्वादि सामान्य भी अन्ततः अपने आश्रय For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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