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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ७४५ प्रकरणम्) भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् चार्थान्तराद् भवितुमर्हतीति यत् तदर्थान्तरं सा सत्तेति सिद्धा । सत्तानुसम्बन्धात् सत्सदिति प्रत्ययानुवृत्तिः, तस्मात् सा सामान्यमेव । आकार की प्रतीति होती है। यह प्रतीति द्रव्य, गुण और कर्म इनसे भिन्न किसी वस्तु से ही होनी चाहिए। वही वस्तु है सत्ता'। इस सत्ता जाति के सम्बन्ध से 'यह सत् है, यह सत् है, इत्यादि आकारों के अतुवृत्तिप्रत्यय ही हो सकते हैं ( कोई भी व्यावृत्तिप्रत्यय नहीं ), अतः सत्ता सामान्य ही है, विशेष नहीं। न्यायकन्दली ष्विति । तद् व्यक्तम् । द्रव्यादिषु सत्सदितिप्रत्ययानुवृत्ति: व्यतिरिक्तप्रत्ययनिबन्धना, भिन्नेषु प्रत्ययानुवत्तित्वात्, चर्मवस्त्रादिषु नीलप्रत्ययानुवृत्तिवत् । यस्मात् सत्ता त्रिषु द्रव्यादिषु प्रत्ययानुवृति करोति न व्यावृत्तिम्, तस्मात् सामान्यमेव, न विशेष इत्युपसंहारार्थः । अपरं द्रव्यत्वगुणत्वकर्मत्वादि अनुवृत्तिव्यावृत्तिहेतुत्वात् सामान्यं विशेषश्च भवति । द्रव्यत्वं द्रव्येष्वनुवत्तिप्रत्ययहेतुत्वात् सामान्यम्, गुणकर्मभ्यो व्यावृत्तिहेतुत्वाद् विशेषः । गुणत्वं गुणेष्वनुवृत्तिप्रत्ययहेतुत्वात् सामान्यम्, द्रव्यकर्मभ्यो व्यावृत्तिप्रत्ययहेतुत्वाद् विशेषः । तथा है, फिर भी जो कोई उसे प्रत्यक्षवेद्य नहीं मानते, उनके सन्तोष के लिए परस्परविशिष्टेषु' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा अनुमान भी उपस्थित करते हैं। इस अनुमान प्रयोग का अर्थ स्पष्ट है। जिस प्रकार नीलवस्त्र के नीलधर्म प्रभृति में एक नीलवर्ग के हो कारण 'यह नील' है, इस एक आकार की प्रतीतियाँ अनुवृत्तिप्रत्यय' रूप होती है, उसी प्रकार द्रव्य, गुण और कर्म इन तीनों में 'यह सत् है' इस एक आकार की प्रतीति भी होती है, इन तीनों से भिन्न किसी वस्तु का ज्ञान उक्त प्रतीतियों का कारण है, क्योंकि उक्त सदाकारक प्रतीतियाँ भी अनुवृत्तिप्रत्यय हैं। (जिसका ज्ञान उक्त अनुवृत्तिप्रत्ययों का कारण है वही 'सत्ता' है) प्रकृत उपसंहार ग्रन्थ का यह अभिप्राय है कि यतः सत्ता द्रव्यादि तीनों पदार्थों में यह सत् है' इस आकार के अनुवृत्तिप्रत्यय का ही कारण है, किसी भी व्यावृत्ति ( प्रत्यय ) का नहीं, अतः ‘सत्ता' सामान्य ही है, विशेष नहीं। द्रव्यत्व, गुणत्व, कर्मत्वादि जातियाँ अनुवृत्तिप्रत्यय और व्यावृत्तिप्रत्यय दोनों के ही कारण हैं, अतः वे 'सामान्य' और विशेष' दोनों ही हैं। जैसे कि द्रव्यत्व जाति सभी द्रव्यों में यह द्रव्य है। इस अनुवृत्तिप्रत्यय का कारण है, अतः 'सामान्य' है । उसी प्रकार द्रव्य में ही 'यह गुण और कर्म से भिन्न है ( क्योंकि इसमें द्रव्यत्व है) इस व्यावृत्तिप्रत्यय का भी कारण है, अतः 'विशेष' भी है । एवं गुणत्व जाति सभी गुणों में 'यह गुण है' इस प्रकार की ६४ For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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