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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम् अथ कर्मपदार्थनिरूपणम्
प्रशस्तपादभाष्यम् उत्क्षेपणादीनां पञ्चानामपि कर्मत्वसम्बन्धः। एकद्रव्यवत्त्वं क्षणिकत्वं मूर्तद्रव्यवृत्तित्वमगुणवत्वं गुरुत्वदवत्वप्रयत्नसंयोगवत्वं स्वकार्यसंयोगविरोधित्वं संयोगविभागनिरपेक्ष
(१) कर्मत्व जाति के साथ सम्बन्ध, (२) एक समय एक ही द्रव्य में रहना, ( ३ ) क्षणिकत्व, ( ४ ) मूर्त द्रव्यों में ही रहना, (५) गुणरहितत्व, (६) गुरुत्व, द्रवत्व, प्रयत्न और संयोग इन चार गुणों से उत्पन्न होना, (७) अपने द्वारा उत्पन्न संयोग से नष्ट होना, (८) किसी और के साहाय्य के बिना संयोग और विभाग को उत्पन्न करना, (६) असमवायिकारणत्व, ( १० ) अपने आश्रय रूप द्रव्य एवं उससे भिन्न द्रव्य इन दोनों में
न्यायकन्दली
जगदकुरबीजाय संसारार्णवसेतवे ।
नमो ज्ञानामृतस्यन्दिचन्द्रायार्धेन्दुमौलये ॥ उत्क्षेपणादीनां च परस्परं साधर्म्यमितरपदार्थवैधर्म्य च प्रतिपादयन्नाहउत्क्षेपणादीनामिति । कर्मत्वं नाम सामान्यम्, तेन सह सम्बन्ध उत्क्षेपणा. वीनामेव । एकद्रव्यवत्त्वम् एकदा एकस्मिन् द्रव्ये एकमेव कर्म वर्तते, एकं कर्म एकत्रेव द्रव्ये वर्तत इत्येकद्रव्यवत्वम् । यद्यकस्मिन् द्रव्ये युगपद् विरुद्धोभयकर्मसमवायः स्यात्, तदा तयोः परस्परप्रतिबन्धाद् दिग्विशेषसंयोगविभागानुत्पत्तो संयोगविभागयोरनपेक्षं कारणं कर्मेति लक्षणहानिः स्यात् । अथाविरुद्धकर्मद्वयसमा
उन अर्द्धचन्द्रशेखर शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ जो जगत् रूप अङ्कर के बीज, संसार समुद्र से पार उतरने के सेतु एवं ऐसे चन्द्रमा के स्वरूप हैं जिनसे ज्ञान रूप अमृत अनवरत स्रवित होता रहता है।
उत्क्षेपणादि कर्मों के परस्पर साधर्म्य और द्रव्यादि पदार्थों के वैधयं का प्रतिपादन करते हुए 'उत्क्षेपणादीनाम्' यह वाक्य लिखा गया है। अर्थात् कर्मत्व नाम की जो जाति है, उसके साथ उत्क्षेपणादि सभी कर्मों का सम्बन्ध है। 'एकद्रव्यवत्व' शब्द से यह अभिप्रेत है कि एक समय तक द्रव्य में एक ही क्रिया रहती है एवं एक क्रिया एक ही द्रव्य में रहती है ( इसलिए एक द्रव्यवत्त्व सभी कर्मों का साधयं है ) एक ही समय यदि विरुद्ध दो कर्मों की सत्ता एक द्रव्य में मानें, तो 'संयोग और विभाग का इतर निरपेक्ष कारण ही कर्म है' कर्म का यह लक्षण न हो सकेगा, क्योंकि (दो क्रियाओं के परस्पर प्रतिरोध के कारण) किसी विशेष दिशा के साथ उस क्रियाश्रय द्रव्य का संयोग नहीं हो सकता। यदि (विरुद्ध दो क्रियायें न मानकर ) अविरुद्ध दो क्रियाओं की सत्ता एक ही समय एक द्रव्य में मानें, तो उनमें से एक ही क्रिया से अभिमत देश के साथ क्रियाश्रयद्रव्य का संयोग या विभाग उत्पन्न हो ही जाएगा,
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