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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् भाषानुवादसहितम् ६६७ प्रशस्तपादभाष्यम् ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यानामिज्याध्ययनदानानि ब्राह्मणस्य विशिष्टानि प्रतिग्रहाध्यापनयाजनानि, स्ववर्णविहिताश्च संस्काराः। यज्ञ, वेदों का अध्ययन, और दान ये तीन ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ( द्विजों ) इन तीनों वर्गों के लिए समान रूप से धर्म के साधन हैं। प्रतिग्रह, अध्यापन ( वेदों का पढ़ाना ) यज्ञ कराना ( याजन ) अपने वर्ण ( ब्राह्मण ) के लिए विहित संस्कार, ये सभी ब्राह्मणों के लिए विशेषधर्म के साधन हैं। न्यायकन्दली धर्मसाधनानि । इज्या यागहोमानुष्ठानम् । अध्ययनं वेदपाठः । दानं स्वद्रव्यस्य परस्वत्वापत्तिसंकल्पविशेषः। शूद्रस्यापि दानमस्त्येव, तेन यज्ञादिषु यहानं तदभिप्रायेणेदं त्रैवणिकानां विशिष्टं धर्मसाधनमुक्तम्। ब्राह्मणस्य विशिष्टान्यसाधारणानि धर्मसाधनानि प्रतिपादयतिप्रतिग्रहाध्यापनयाजनानि। प्रतिग्रहो विशिष्टाद् द्रव्यग्रहणम् । अध्यापनं तु प्रसिद्धमेव । याजनमात्विज्यम् । एतानि ब्राह्मणस्य धर्मसाधनानि, तस्यामीभिरेवोपायजितानां द्रव्याणां धर्माधिकारात्। स्ववर्णविहिताश्चाष्ट चत्वारिशत् संस्काराः वैदिककर्मानुष्ठानयोग्यतापादनद्वारेण ब्राह्मणस्य धर्मसाधनम् । से याग एवं होम का अनुष्ठान समझना चाहिए । 'अध्ययन' शब्द का अर्थ है वेदों का पाठ । 'दान' शब्द से वह विशेष प्रकार का संकल्प अभीष्ट है, जिससे अपने स्वत्ववाले धन में दूसरे के स्वत्व की उत्पत्ति हो सके। यज्ञादि में जो दान किये जाते हैं, यहां उन्हीं दानों को समझना चाहिए, यदि ऐसी बात न हो, किन्तु दान शब्द से सामान्यतः सभी दान अभीष्ट हों ( तो फिर ) त्रैमणि कों के लिए निदिष्ट विशेष धर्मों में इसकी गणना असङ्गत हो जाएगी, क्योंकि के बल दान तो शद्रों के लिए भी धर्म का साधन है ही। ब्राह्मणों के विशिष्ट' अर्थात् असाधारण धर्म के जो साधन हैं ( अर्थात् जो साधन केवल ब्राह्मणों में ही धर्म का उत्पादन कर सकते हैं ) उनका प्रतिपादन प्रतिग्रहाध्यापनयाजनानि' इत्यादि सन्दर्भ से किया गया है। विहित एवं विशेष व्यक्ति से दान का ग्रहण ही 'प्रति ग्रह' शब्द से लेना चाहिए। अध्यापन शब्द का अर्थ प्रसिद्ध ही है। याजन' शब्द का अर्थ है ऋत्विक् का कार्य करना । 'एतानि ब्राह्मणस्य धर्मसाधनानि' ब्राह्मणों को इन्हीं उपायों से प्राप्त धन के द्वारा धर्म सम्पादन का अधिकार है। 'स्ववर्णविहिताश्च संस्काराः' अर्थात् ब्राह्मणों के लिए विहित अड़तालिस प्रकार के संस्कार भी उनमें वेदों स निद्दिष्ट अनुष्ठान करने की योग्यता सम्पादन के द्वारा धर्म के साधन है। For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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