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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ६६८ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम रणनिरूपणे धर्म प्रशस्तपादभाष्यम् क्षत्रियस्य सम्यक् प्रजापालनमसाधुनिग्रहो युद्धेष्वनिवर्त्तनं स्व. कीयाश्च संस्काराः। वैश्यस्य क्रयविक्र पकृषिपशुपालनानि स्वकीयाश्च संस्काराः । अच्छी तरह प्रजा का पालन करना, दुष्टों का दमन, युद्ध से न लौटना ( अनिवत्ति) और अपने ( क्षत्रियों ) के लिए शास्त्रों में विहित संस्कार ये सभी क्षत्रियों के लिए विशेष धर्म के साधन हैं। खरीद, बिक्री, खेती करना, पशुओं का पालन, अपने वैश्यों के ) लिए शास्शों के द्वारा विहित संस्कार ये सभी वैश्यों के लिए विशेष धर्म के साधन हैं। न्यायकन्दली क्षत्रियस्य विशिष्टानि धर्मसाधनानि। सम्यक् प्रजापालनं न्यायवत्तीनां प्रजान परिरक्षणम् । असाधुनिग्रहः, दुष्टानां यथाशास्त्रं शासनम् । युद्धेष्वनिवर्त्तनं युद्धेषु विजयावधिः प्राणावधिर्वा आयुधव्यापारः। स्वकीयाश्च संस्काराः। वैश्यस्य क्रयविक्रयकृषिपशुपालनानि। मूल्यं दत्त्वा परस्माद् द्रव्यग्रहणं क्रयः, मूल्यमादाय परस्य स्वद्रव्यदानं विक्रयः,। कृषिः परिकर्षिताय, भूमौ बीजस्य वपनं रोपणं च, पशुपालनं गोऽजाविकादिपरिरक्षणम् । एतानि वैश्यस्य धर्मसाधनानि, तस्यामीभिरेवोपायैरजितानां धनानां धर्माङ्गत्वात् । शूद्रस्य पूर्वेषु वर्णेषु पारतन्त्र्यममन्त्रिकाश्च क्रिया धर्मसाधनम् । 'क्षत्रियस्य विशिष्ट नि धर्मसाधनानि' । 'सम्यक प्रजापालन' अर्थात् उचित न्याय की रीति से चलनेवाली प्रजाओं का पालन करना, असाधुनिग्रह' अर्थात् शास्त्रों में कही गयी रीति के अनुसार दुष्टों को दण्ड देना, युद्धष्वनिवर्त्तनम्' अर्थात् जब तक विजय प्राप्त न हो जाय, या जब तक प्राण रहे तब तक अस्त्र शस्त्रों को चलाते रहना, एवं क्षत्रियों के लिए विहित संस्कार, य सभी क्षत्रियों के लिए धर्म के साधन है। 'वैश्यस्य क्रयविक्रय कृषिपशुपालनानि'। मूल्य देकर दूसरों से द्रव्य लेना 'क्रय' कहलाता है । मूल्य लेकर दूसरे को अपना द्रव्य देना ही 'विक्रय है। जोती हुई भूमि में बीजों को बोना या रोपना ही 'कृषि' है। गाय बकरी प्रभृति को पालना ही पशुपालन' है। ये सभी वैश्यों के लिए ही धर्म के साधन हैं। इन्हीं उपायों से प्राप्त धन वैश्यों के धर्म के साधक हैं। 'शूद्रस्य पूर्ववर्णेषु पारतन्त्र्यममन्त्रि काश्च क्रियाः' अर्थात् पहिले कहे हुए ब्राह्मणादि वर्णों की अधीनता, बिना मन्त्र के ही विवाहादि क्रियाओं के अनुष्ठान प्रभृति ही शूद्रों के धर्म के साधन हैं। For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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