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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ६२५ সকল ) भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् लिङ्गदर्शनेच्छानुस्मरणाद्यपेक्षादात्ममनसोः संयोगविशेषात् पटवाभ्यासादर प्रत्ययजनिताच्च संस्काराद् दृष्टश्रृतानुभूतेष्व लिङ्ग ( हेतु ) के दर्शन एवं इच्छा, स्मृति प्रभृति ( उद्बोधकों ) से साहाय्यप्राप्त आत्मा ओर मन के विशेष प्रकार के संयोग और संस्कार इन दोनों से उत्पन्न ज्ञान ही स्मृति है। यह प्रत्यक्ष, अनुमिति एवं शाब्दबोध के द्वारा ज्ञात विषयों की होती है, अतः स्मृति अतीत विषयक ही न्यायकन्दली स्मृतिलक्षणां विद्यामाचष्टे-लिङ्गदर्शनेच्छेत्यादिना । लिङ्गदर्शनं चेच्छा. नुस्मरणं च। आदिशब्देन न्यायसूत्रोक्तानि प्रणिधानादीनि संगह्यन्ते, तान्यपेक्षमाणादात्ममनसोः संयोगविशेषादिति स्मृतिकारणकथनम् । आत्ममन:संयोगस्य च लिङ्गदर्शनादिसहकारितैव विशेषः, केवलादस्मात् स्मरणानुत्पत्तः। लिङ्गदर्शनवत् संस्कारोऽपि स्मृतेनिमित्तकारणमित्याह-पटवाभ्यासादरप्रत्ययजनितात् संस्काराज्जायते पटुप्रत्ययः स्फुटतरप्रत्ययस्तस्मात् संस्कारो जायते । तेन गच्छत्तृणसंस्पर्शज्ञानात् क्वचित् पटुप्रत्ययोत्पादेऽपि ग्रहणयोग्यः संस्कारो न भवति । यथा साक्षात् पठितेऽनुवाके । तेन गृहीतस्यावृत्त्या-पुनःपुनर्गहणलक्षणोऽभ्यासः संस्कारकारणम्, तस्मिन् सत्यनुवाकस्य ग्रहणदर्शनात् । 'लिङ्गदर्शनेच्छा' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा स्मृति' रूप विद्या (प्रमा) का निरूपण करते हैं । ( उक्त वाक्य में प्रयुक्त 'लिङ्गदर्शनेच्छानुस्मरण' शब्द से ) लिङ्गदर्शनञ्च, इच्छा च, अनुस्मरणञ्च' इस व्युत्पत्ति के अनुसार, लिङ्गज्ञान, इच्छा और बार बार स्मरण को, एवं उक्त वाक्य में ही प्रयुक्त 'आदि' शब्द से न्यायसूत्र ( अ० ३ आ. २ सू० ४४ ) में कथित स्मृति के प्रणिधानादि कारणों को संगृहीत समझना चाहिए । 'तान्यपेक्षमाणादात्ममनसो. संयोगविशेषात्' इस पूर्वानुवृत्तिवाक्य से स्पृति का कारण प्रदर्शित हुआ है। आत्मा और मन के संयोग को स्मृति के उत्पादन में जो कथित 'प्रणिधानादि' सहायकों की अपेक्षा होती है, वही उस संयोग का विशेष' है ( जो प्रकृत वाक्य में प्रयुक्त 'संयोगविशेष' शब्द के द्वारा व्यक्त किया गया है )। क्योंकि (प्रणिधानादि के न रहने पर) केवल आत्मा और मन के संयोग से स्मृति की उत्पत्ति नहीं होती है । 'पटवाभ्यासादरप्रत्ययजनित!त् संस्कारात्' इस वाक्य के द्वारा लिङ्गदर्शन की तरह संस्कार में भी स्मृति की निमित्तकारणता कही गयी है । ‘पटुप्रत्यय' शब्द का अर्थ है स्फुटतर ( उपेक्षान्य ) प्रत्यय, उससे ही संस्कार की उत्पत्ति होती है। 'पटुप्रत्यय' शब्द का स्फुटतर प्रत्यय रूप अर्थ इसलिए कर दिया गया है कि राह चलते हुए पुरुष को किसी तृण के स्पर्श का यद्यपि पटुपत्यय होता है, फिर भी उससे स्मृति के उत्पादन में क्षम ७१ For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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