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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ६२४ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणनिरूपणे निर्णय प्रशस्तपादभाष्यम् स प्रत्यक्षनिर्णयः । यथा स्थाणुपुरुषयोरूर्ध्नतामात्रसादृश्यालोचनाद् विशेषेष्व प्रत्यक्षेषुभयविशेषानुस्मरणात् , किमयं स्थाणुर्वा पुरुषो वेति संशयोत्पत्तौ शिरःपाण्यादिदर्शनात् पुरुष एवायमित्यवधारणज्ञानं प्रत्यक्षनिर्णयः। विषाणमात्रदर्शनाद् गौर्गवयो वेति संशयोत्पत्ती सास्नामात्रदर्शनाद् गौरेवायमित्यवधारणज्ञानमनुमाननिर्णय इति । होते हैं । अतः (१) प्रत्यक्ष निर्णय और (२) अनुमाननिर्णय भेद से निर्णय दो प्रकार का है। (१) (धर्मी के असाधारण धर्म रूप) विशेष के प्रत्यक्ष से जो संशय का विरोधी ज्ञान उत्पन्न होता है उसे प्रत्यक्षनिर्णय' कहते हैं। जैसे कि स्थाणु और पुरुष दोनों में साधारण रूप से रहनेवाली उच्चता ( उँचाई ) रूप सादृश्य के आलोचन ( साधारण ) ज्ञान से एवं स्थाणु और पुरुष दोनों के असाधारण धर्मों के ज्ञात न रहने के कारण केवल उन दोनों के असाधारणधर्म रूप विशेषों के स्मरण से यह स्थाणु है ? या पुरुष ?' इस आकार के संशय की उत्पत्ति होती है । इसके बाद ( केवल पुरुष में ही रहनेवाले शिर पैर प्रभृति ) पुरुष के असाधारण धर्मों के देखने से यह पुरुष ही है' इस आकार का जो निश्चय रूप ज्ञान उत्पन्न होता है वही 'प्रत्यक्ष निर्णय' है। (२) केवल सींग के देखने के कारण यह संशय होता है कि यह गो है या गवय ?' ( इसके बाद केवल गाय में ही रहनेवाली) सास्ना के देखने से जो 'यह गाय ही है' इस आकार का ज्ञान उत्पन्न होता है वही 'अनुमाननिर्णय' है। न्यायकन्दली संग्रहवाक्यं विवृण्वन्निर्णस्य प्रत्यक्षानुमानयोरन्तर्भावं दर्शयति-एतदेवेत्यादि। प्रत्यक्षविषये यदवधारणात्मकं ज्ञानं स प्रत्वक्षनिर्णयः । यच्चानुमानविषये ऽवधारणज्ञानं सोऽनुमाननिर्णय इति उपरितनेन ग्रन्थसन्दर्भण कथयति । प्रयुक्त ) 'विशेरते' इस पद का अर्थ है 'संशेरते' अर्थात् संशय का होना। यद्यपि सभी प्रकार के निश्चयात्मक ज्ञान निर्णय हैं फिर भी संशय के बाद होनेवाले निश्चयात्मक ज्ञान में ही निर्णय' शब्द का अधिकतर प्रयोग होता है, अतः निर्णय के लक्षणवाक्य में 'संशविरोधि' पद का प्रयोग किया गया है। 'एतदेव' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा अपने हो संक्षिप्त लक्षण वाक्य की व्याख्या करते हुए भाष्यकार ने 'निर्णय' का प्रत्यक्ष और अनुमान में अन्तर्भाव दिखलाया है। ऊपर कहे हुए सन्दर्भ का संक्षिप्त अभिप्राय यह है कि प्रत्यक्ष के द्वारा ज्ञात होनेवाले विषयों का अवधारणात्मक ज्ञान प्रत्यक्ष निर्णय' है, एवं अनुमान के द्वारा ज्ञात होनेवाले विषयों का जो अवधारणात्मक ज्ञान वह 'अनुमाननिणय' है। For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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