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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् । भाषानुवादसहितम् ६१७ प्रशस्तपादभाष्यम् कथम् ? अनित्यः शब्द इत्यनेनानिश्चितानित्यत्वमात्र विशिष्ट: शब्दः कथ्यते । प्रयत्नानन्तरीयकत्वादित्यनेनानियत्वसाधनधर्ममात्रमभिधीयते । 'इह यत् प्रयत्नानन्तरीयकं तदनित्यं दृष्टम् , यथा घटः' इत्यनेन साध्यसामान्येन साधनसामान्यस्यानुगममात्रमुच्यते । नित्यम (प्र०) (प्रतिज्ञादि पाँच अवयवों की आवश्यकता) किस प्रकार है ? ( उ० ) 'अनित्यः शब्दः' ( शब्द अनित्य है ) इस प्रतिज्ञावाक्य से अनिश्चित अनित्यत्व से युक्त शब्द का ही बोध होता है । प्रतिज्ञावाक्य के बाद प्रयुक्त प्रयत्नानन्तरीयकत्वात्' । यतः प्रयत्न के बाद ही शब्द की सत्ता उपलब्ध होती है ) इस हेतु वाक्य से 'शब्द में अनित्यत्व का न्यायकन्दली इति । तत्र को हेतुरित्यपेक्षायां प्रयत्नानन्तरीयकत्वात् पूर्वमसत: प्रयत्नानन्तरमुपलभ्यमानत्वादिति हेतुवचनेनानित्यत्वसाधनधर्ममात्रमभिधीयते । मात्रग्रहणेन पक्षधर्मताया अन्वयव्यतिरेकयोश्चानभिधानं दर्शयति । अवगतसाधनस्य कथमिदं साध्यं गमयतीति साधनसामर्थ्यापेक्षायाम् 'इह जगति यत् प्रयत्नानन्तरीयकं तदनित्यं दृष्टम्' इत्युदाहरणेन साध्यसामान्येन साधनसामान्यस्यानुगममात्रं करोति, न तु स्वरूपान्तरमिति मात्रशब्दार्थः । नित्यम प्रयत्नानन्तरीयकमिति वैधर्म्यनिदर्शनेन साध्याभावे साधनाभावः प्रदर्श्यते-यत् प्रयत्नानन्तरीयकं तदनित्यइस प्रकार की आकाङ्क्षा के उठने पर उसके शमन के लिए 'प्रयत्नानन्तरीयकत्वात्' इस हेतुवाक्य का प्रयोग किया जाता है। प्रयत्न के बाद ही पहिले से अविद्यमान वस्तु की उपलब्धि होती है। इस हेतु वाक्य के द्वारा शब्द में अनित्यत्व के साधक 'प्रयत्नानन्तरीयकत्व' ही केवल उपस्थित किया जाता है। इस वाक्य में 'मात्र' शब्द का प्रयोग यह समझाने के लिए किया गया है कि इस वाक्य से हेतु का अन्वय और व्यतिरेक अर्थात् व्याप्ति और पक्षधर्मता का प्रतिपादन नहीं होता है ( केवल हेतु का ही अभिधान होता है)। बोद्धा को जब हेतु का ज्ञान हो जाता है, तब उसे जिज्ञासा होती है कि 'किस रीति से यह हेतु इस साध्य की अनुमिति का उत्पादन कर सकता है ? ' हेतु के सामर्थ्य के प्रसङ्ग को इस जिज्ञासा की निवृत्ति के लिए ही ( उक्त स्थल में ) 'इह' इत्यादि उदाहरण वाक्य का प्रयोग किया जाता है। जिनका अभिप्राय है कि 'इह' अर्थात् संसार में प्रयत्न के बाद ही जिसकी उपलब्धि होती है, वह अर्थ अनित्य ही देखा जाता है। उदाहरण वाक्य से सभी साधनों में सभी साध्यों की केवल अनुगति अर्थात् व्याप्ति ही केवल दिखलायी जाती है, पक्षधर्मता नहीं। यही बात उक्त सन्दर्भ में 'मात्र' शब्द के प्रयोग से दिखलायी गई है। 'नित्यमप्रयत्नानन्त रीयकम्' इस वैधम्यं निदर्शन वाक्य के द्वारा साध्य के अभाव में हेतु के अभाव For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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