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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् ६०६ न्यायकन्दली दृश्यते कथं तस्मादपि पक्षधर्मतासिद्धिरिति चेत् ? असिद्धाविनाभावस्यापि भ्रान्त्या व्याप्तिवचनं दृश्यते कथं तस्मादन्वयसिद्धिः ? उदाहरणे व्याप्तिग्राहकप्रमाणानुसारेणान्वयनिश्चयो न वचनमात्रेण, तस्य सर्वत्राविशेषादिति चेत् ? उपनयेऽपि पक्षधर्मताग्राहकप्रमाणानुसारादेव तद्धर्मतानिश्चयो न वचनमात्रत्वात् । हेत्वभिधानान्यथानुपपत्त्यैव पक्षधर्मताग्राहिप्रमाणानुसारो भवतीति चेत् ? तदन्यथानुपपत्त्यैव व्याप्तिग्राहकप्रमाणानुसारो भविष्यति । हेतुवचनस्यान्यार्थत्वान्न तदुपनयनसामर्थ्यमस्तीति तदुपस्थापनमुदाहरणेन क्रियत इति चेत् ? इहापि सैव रीतिरनुगम्यताम्, अलमन्यथा सम्भावितेन । हैं, अतः उदाहरण के द्वारा व्याप्ति का प्रदर्शन किया जाता है। ( उ० ) तो फिर उपनय के प्रसङ्ग में भी इसी प्रकार यह कह सकते हैं कि पक्ष में न रहनेवाली ( अपक्षधर्म ) वस्तु में भी भ्रान्तिवश हेतुवाक्य के द्वारा हेतुत्व का प्रतिपादन हो सकता है, अतः उदाहरण में निश्चित रूप से विद्यमान हेतु को पक्ष में निश्चित रूप से समझाने के लिए उपनय का प्रयोग भी आवश्यक है। (प्र०) पक्ष में अनिश्चित हेतु के बोधक उपनय वाक्य का भ्रान्ति से भी प्रयोग होता है, अतः उपनय से पक्षधर्मता की सिद्धि कैसे होगी ? ( उ०) जिस हेतु में व्याप्ति निश्चित नहीं है, भ्रान्तिवश उसमें व्याप्ति को समझाने के लिए भी 'व्याप्तिवचन अर्थात् उदाहरण वाक्य का प्रयोग होता है, फिर उदाहरण से ही व्याप्ति की सिद्धि किस प्रकार होगी ? (प्र०) उदाहरण वाक्य केवल वाक्य होने के कारण ही व्याप्ति का बोधक नहीं हैं, क्योंकि वाक्यत्व तो सभी वाक्यों मे समान रूप से है। किन्तु उदाहरण वाक्य में यतः व्याप्ति के दोधक प्रमाण रूप शब्दों का प्रयोग होता है, अतः उदाहरण वाक्य से व्याप्ति का बोध होता है। ( उ० ) उपनय के प्रसङ्ग में भी इसी प्रकार कहा जा सकता है कि उपनयवाक्य केवल वाक्य होने के कारण ही पक्षधर्मता का बोधक नहीं है, क्योंकि वाक्यत्व तो सभी वाक्यों में समान रूप से है, किन्तु उपनय वाक्य में जिस लिए कि हेतु में पक्षधर्मता के बोधक प्रमाण रूप शब्दों का प्रयोग होता है, इसीलिए उपनय वाक्य से पक्षधर्मता का बोध होता है। (प्र.) हेतु वाक्य से ( उपयुक्त) हेतुत्व का बोध तब तक सम्भव नहीं है, जबतक कि उसे हेतु में पक्षधर्मता का बोधक प्रमाण न मान लिया जाय, अतः हेतु वाक्य से ही पक्षधर्मत्व का बोध हो जाएगा ( उसके लिए उपनय वाक्य के प्रयोग की आवश्यकता नहीं है )। ( उ० ) यही बात व्याप्ति के प्रसङ्ग में भी कही जा सकती है कि हेतु में उपयुक्त हेतुत्व का बोध तब तक सम्भव नहीं है, जबतक हेतुवाक्य को व्याप्ति का भी बोधक प्रमाण न मान लिया जाय, ऐसी स्थिति में यह भी कहा जा सकता है कि व्याप्ति के बोध के लिए उदाहरण वाक्य की आवश्यकता नहीं है ( हेतुवाक्य से ही व्याप्ति का भी बोध हो जाएगा) यदि यह कहें कि (प्र०) हेतु वाक्य ( हेतु रूप ) दूसरे अर्थ का बोधक है, अतः उसमें व्याप्ति को समझाने का सामर्थ्य नहीं है, अत: व्याप्ति को समझाने के लिए उपनय वाक्य की अलग से आवश्यकता होती है। (उ०) For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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