________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
६१.
न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [ गुणेऽनुमानेऽवयव
प्रशस्तपादभाष्यम् मनुपलब्धशक्तिकं निदर्शने साध्यधर्मसामान्येन सह दृष्टमनुमेये येन वचनेनानुसन्धीयते तदनुसन्धानम् । तथा च वायुः क्रियावानिति । अनुमेयाभावे च तस्यासत्त्वमुपलभ्य न च तथा वायुनिष्क्रिय इति । सामान्य में साध्य सामान्य को साधन करने का सामर्थ्य उपलब्ध नहीं होता है। उसके लिए यह आवश्यक है कि उदाहरण में साध्यसामान्य के साथ वृत्तित्व रूप से ज्ञात हेतुसामान्य का ( केवल हेतुसामान्य का नहीं ) पक्ष में सत्ता का ज्ञापन हो 1 यह ज्ञापन जिस वाक्य से होता है, वही ‘साधानुसंधान' है। ( वायु में क्रियावत्त्व हेतु से द्रव्यत्व के अनुमान के लिए यदि तीर को निदर्शन रूप से उपस्थित किया जाय, एवं उसके बाद तीर रूप निदर्शन में द्रव्यत्व के साथ ज्ञात क्रियावत्त्व का वायु रूप पक्ष में सत्ता दिखाने के लिए) 'वायु में (भी) क्रिया है' इस वाक्य का प्रयोग किया जाय तो ( उक्त अनुमान के लिए ) यह वाक्य 'साधानुसन्धान' होगा ।
(वैधर्म्यनिदर्शन या विपक्ष में ) अनुमेय अर्थात् साध्य के अभाव के साथ ज्ञात हेतु के अभाव का पक्ष में जिस वाक्य से असत्ता प्रतिपादित हो, वही वाक्य 'वधानुसन्धान है। जैसे कि ( कोई वायु में क्रियावत्त्व हेतु से द्रव्यत्व के अनुमान के लिए ही इस वैधर्म्य निदर्शनवाक्य का प्रयोग करे कि 'जो द्रव्य नहीं है उसमें क्रिया भी नहीं है जैसे कि सत्ता, सत्ता में द्रव्यत्व नहीं है तो क्रिया भी नहीं है' इस रीति से उक्त वाक्य से सत्ता में द्रव्यत्वाभाव के साथ ज्ञात) क्रियावत्त्व के अभाव का वायु में असत्ता को प्रतिपादन करनेवाले सत्ता की तरह 'वायु क्रियाशून्य नहीं है' इत्यादि वाक्य 'वैधानुसन्धान हैं'।
न्यायकन्दली
__ अस्तु तहर्युपनयः, व्यर्थ हेतुवचनम् ? न, असति हेतुवचने साधनस्वरूपानवबोधात् तत्सामर्थ्य जिज्ञासाया अनुपपत्तौ उदाहरणादिवचनानां प्रवृत्त्यभावात् । तथा च न्यायभाष्यम्--'असति हेतौ कस्य साधनभावः प्रदर्यते' इति ।
तो फिर उपनय के प्रसङ्ग में भी वही रीति अपनाइए ? उसके लिए अलग रीति अपनाना व्यर्थ है।
(प्र.) ऐसी स्थिति में उपनय को ही मान लीजिए, हेतु वाक्य को ही छोड़ दीजिए ? ( उ०) सो सम्भव नहीं है क्योंकि यदि हेतुवाक्य न रहे, तो हेतु के स्वरूप का बोध कैसे होगा ? हेतु के स्वरूप का बोध न होने पर हेतु की सामर्थ्य के प्रसङ्ग में कोई जिज्ञासा ही न उठ सकेगी, जिससे उदाहरणादि वाक्यों की प्रवृत्तियाँ ही अनुपपन्न
For Private And Personal