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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६०८. www.kobatirth.org न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् न्यायकन्दली Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ गुणेऽनुमाने निदर्शन विनाभावे कथिते सत्यवधारितसामर्थ्यस्य हेतोः पक्षे पश्चात् सम्भवो जिज्ञास्यत इत्युदाहरणानन्तरं पक्षधर्मतावगमार्थमुपगन्तव्ध उपनयः, हेतुत्वाभिधानसामर्थ्यादेव पक्षधर्मत्वं प्रतीयते, व्यधिकरणस्यासाधकत्वादिति चेत् ? तदभिधानसामर्थ्याद् व्याप्तिरपि लप्स्यते, अनन्वितस्य हेतुत्वाभावादित्युदाहरणमपि न वाच्यम् । असाधारणस्यापि भ्रान्त्या हेतुत्वाभिधानोपपत्तेर्न तस्मादेकान्तेनान्वयप्रतीतिरस्तीत्युदाहरणेन व्याप्तिरुपदश्यंत इति चेद् ? धर्मिण्यविद्यमानस्यापि भ्रमण हेतुत्वाभिधानोपलम्भान्न ततः पक्षधर्मता सिद्धिरस्तीत्युदाहरणस्थस्य लिङ्गस्य पक्षेऽस्तित्वनिश्चयार्थमुपनयो वाच्यः । असिद्धस्य भ्रमादुपनयोऽपि For Private And Personal जिज्ञासा का कारण है ( प्रतिज्ञा वाक्य से साध्यावगति के बाद ) केवल हेतु की आकाङ्क्षा से जिस हेतु वाक्य का प्रयोग होता है, उससे केवल हेतु के स्वरूप काही बोध होता है, हेतु के पक्षधर्मता रूप सामर्थ्य का नहीं । क्योंकि ( एक बार प्रयुक्त शब्द एक ही अर्थ को समझा सकता है ), दो अर्थों को नहीं । साधारण रूप से हेतु का ज्ञान हो जाने पर स्वाभाविक रूप से यह जिज्ञासा होती है कि 'इससे साध्य का ज्ञान किस रीति से उत्पन्न होता है ?" बोद्धा की इस जिज्ञासा से प्रेरित होकर ( उदाहरण ) का प्रयोग किया जाता है, जिस हेतु में साध्य उसका प्रदर्शन हो सके, क्योंकि हेतु में साध्य की व्याप्ति के ज्ञात होने अनुमिति होती है । इस क्रम से हेतु में साध्य के अविनाभाव का स्वाभाविक क्रम से पक्ष में साध्य की व्याप्ति से युक्त हेतु के रहने जिसको मिटाने के लिए ही उदाहरणवाक्य के बाद 'उपनय' वाक्य का प्रयोग करना पड़ता है । ( प्र० ) ( साध्य के साथ एक आश्रय में रहनेवाले ही व्याप्तिवचन की जो व्याप्ति है, पर ही साध्य की निश्चय हो जाने पर की जिज्ञासा उठती है, हेतु से ही साध्य का बोध होता है ) साध्य के आश्रय से भिन्न आश्रय में रहनेवाले हेतु से नहीं, इस रीति से हेतु वाक्य के द्वारा हेतुत्व का जो प्रतिपादन होता है. उसी से हेतु में पक्षधर्मता का भी बोध हो ही जाएगा । अतः पक्षधर्मता के लिए उपनयवाक्य का प्रयोग व्यर्थ है । ( उ० ) इस प्रकार तो हेतु वाक्य के द्वारा हेतुत्व के अभिधान से ही व्याप्ति का लाभ भी सम्भव है, क्योंकि व्याप्ति के बिना भी हेतु में हेतुता सम्भावित नहीं है, अतः हेतु वाक्य से ही व्याप्ति का भी लाभ हो जाएगा । यतः साध्य की व्याप्ति ( अन्वय) के बिना किसी में हेतुता नहीं आ सकती, अतः उदाहरण वाक्य का प्रयोग करना आवश्यक होता है । यदि यह कहें कि भ्रान्तिवश असाधारण हेतु ( केवल पक्ष में ही रहनेवाला हेतु जो वस्तुतः हेत्वाभास हैं ) भी हेतु वाक्य के द्वारा अभिहित हो सकता है । हेतु वाक्य से ही व्याप्ति का भी लाभ हो जाएगा, क्योंकि साध्य को व्याप्ति के बिना किसी में हेतुता नहीं आ सकती, अतः उदाहरण वाक्य का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए । यदि यह कहें कि भ्रान्तिवश असाधारण हेतु ( केवल पक्ष में ही रहनेवाले हेत्वाभास ) का भी हेतु है | अतः हेतु वाक्य के द्वारा हेतु में वाक्य के द्वारा अभिधान किया जा सकता व्याप्ति की निश्चित प्रतीति नहीं हो सकती
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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