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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् न्यायकन्दली दृष्टान्ते साध्याविनाभूतत्वेन दर्शितं लिङ्गं पक्षेऽनुसन्धीयते प्रतिपाद्यते अनेनेति व्युत्पत्त्या । एतदेव स्वोक्तं विवृणोति-अनुमेयधर्ममात्रत्वेनाभिहितं लिङ्गसामान्यमिति । प्रतिज्ञानन्तरं हेतुवचनेन लिङ्ग वस्तुव्यावृत्त्यानुमेयेऽस्तीत्येतावन्मात्रतया हेतुत्वेनाभिहितम्, न तु धमिणि तस्य सद्भावः कथित इत्यभिप्रायः। लिङ्गस्य साध्यप्रतिपादने शक्तिरन्वयव्यतिरेको पक्षधर्मता च, सा पूर्व प्रतिज्ञाहेतवचनाभ्यां तस्य नावगतेत्यनुपलब्धशक्तिकं निदर्शने साध्यधर्मसामान्येन सह दृष्टमनुमेये येन वचनेनानुसन्धीयते तदनुसन्धानमिति। ___ अयमत्राभिसन्धिः - परार्थः शब्दो यथा यथा परस्य जिज्ञासोदयते तथा तथा प्रयुज्यते, प्रत्येतुश्च साध्येऽभिहिते साधने भवत्याकाङ्क्षा-कुत इदं सिद्धयति? न तु साधनस्य सामर्थ्यम्, स्वरूपावगतिपूर्वकत्वात् सामर्थ्यजिज्ञासायाः। साधने चाकाक्षिते प्रयुज्यमानं हेतुवचनं हेतुस्वरूपमात्रं कथयति, न तस्य पक्षधर्मताम, एकस्य शब्दस्योभयार्थवाचकत्वाभावात् । विज्ञाते हेतौ कथमस्य हेतुत्वमिति सामर्थ्य जिज्ञासायां साध्यप्रतीतेरविनाभावप्रतीतिनान्तरीयकत्वाद् व्याप्तिवचनेना का पक्ष (रूप अनुमेय ) में सत्ता का प्रदर्शन जिस वाक्य के द्वारा हो वही 'अनुसन्धान' है, वहो बात 'निदर्शने' इत्यादि से भाष्यकार ने स्वयं कही है जिसकी व्याख्या 'अनुमेयमात्रत्वेनाभिहित लिङ्गसामान्यम्' इत्यादि से भाष्यकार स्वयं करते हैं। अभिप्राय यह है कि प्रतिज्ञावाक्य के प्रयोग के बाद प्रयुक्त हेतुवाक्य के विपक्षव्यावृत्ति के आक्षेप द्वारा सामान्य रूप से ही यह समझा जाता है कि 'यह हेतु अनुमेय ( पक्ष) में है। इससे हेतु केवल हेतुत्व रूप से ही प्रतिपादित होता है। इससे पक्ष रूप धर्मी में हेतु को सत्ता प्रतिपादित नहीं होती है। हेतु में साध्य का अन्वय और व्यतिरेक एवं पक्ष में हेतु का रहना (पक्षधर्मता ) ये दोनों ही वस्तुतः हेतु में रहनेवाली साध्य के ज्ञापन को शक्ति है। (यह शक्ति हेतु में ज्ञात होकर ही साध्यज्ञान रूप अनुमिति को उत्पन्न करती है) यह शक्ति (निदर्शन वाक्य के प्रयोग के ) पहिले प्रतिज्ञा वाक्य और हेतु वाक्य इन दोनों के द्वारा ज्ञात नहीं हो पाती। इस प्रकार अज्ञात शक्ति से युक्त हेतुसामान्य ही साध्यसामान्य के साथ निदर्शन ( उदाहरण ) में देखा जाता है। इस रूप से देखे हुए हेतु का अनुमेय ( पक्ष ) में अनुसन्धान (प्रति गदन ) जिस वाक्य के द्वारा हो वही प्रकृत में अनुसन्धान' है। गूढ़ अभिप्राय यह कि जिस क्रम से बोद्धा पुरुष की जिज्ञासा उठती है, उसी क्रम से दूसरे के लिए (परार्थ) शब्द का प्रयोग होता है । तदनुसार (वक्ता के द्वारा प्रयुक्त प्रतिज्ञा वाक्य से ) साध्य के प्रतिपादित हो जाने पर बोद्धा को हेतु के प्रसङ्ग में यही जिज्ञासा स्वाभाविक रूप से होनी है कि 'इस साध्य की सिद्धि किस हेतु से होती है ?' (प्रतिज्ञा वाक्य के प्रयोग के बाद हेतु विषयक इस जिज्ञासा से पहिले ) हेतु की शक्ति के प्रसङ्ग में जिज्ञासा नहीं होती है, क्योंकि हेतु के स्वरूप का ज्ञान हेतुगत सामर्थ्य की For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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