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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् अवयवाः पुनः प्रतिज्ञापदेशनिदर्शनानुसन्धानप्रत्याम्नायाः। ये अवयव ( १ ) प्रतिज्ञा, ( २ ) अपदेश ( हेतु ), (३) निदर्शन ( उदाहरण ), (४) अनुसंधान ( उपनय ) और ( ५ ) प्रत्याम्नाय ( निगमन ) भेद से पाँच प्रकार के हैं। न्यायकन्दली अत्र समाधिः-न शब्दस्य परार्थत्वात् तद्द्वारमनुमानपारार्थ्यमिति वदामः, अपि तु यत् परार्थं पञ्चावयवं वाक्यं तल्लिङ्गप्रतीतिद्वारेणानुमितिहेतुत्वादनुमानमिति ब्रूमः। नन्वेवमपि लिङ्गप्रतिपादकस्य प्रत्यक्षस्यानुमानतावतारप्रसङ्गः ? न प्रसङ्गस्तत्र लौकिकशब्दप्रयोगाभावात् । पञ्चावयवं वाक्यमित्युक्तम् । के पुनस्ते पञ्चावयवाः ? तत्राहअवयवाः पुनः प्रतिज्ञापदेशनिदर्शनानुसन्धानप्रत्याम्नायाः । पुनःशब्दो वाक्यालङ्कारे, तत्र तेषां मध्येऽनुमेयोद्देशोऽविरोधी प्रतिज्ञा। एतत् स्वयमेव विवृणोति-प्रतिपिपादयिषितेत्यादिना । प्रतिपादयितुमिष्टो यो धर्मस्तेन (उ०) इस प्रसङ्ग में हम लोगों का यह समाधान है कि इस युक्ति से हम अनुमान को परार्थ नहीं मानते कि सामान्यतः सभी शब्द दूसरों को समझाने के लिए ही प्रयुक्त होते हैं, अतः अपने उपस्थापक या ज्ञापक पञ्चावयववाक्य रूप शब्द के द्वारा हेतु वा हेतु ज्ञान रूप अनुमान भी परार्थ है, किन्तु (हम लोगों का यह कहना है कि) चूंकि परार्थ ( दूसरों को समझाने के लिए प्रयुक्त) जो पञ्चावयव वाक्य वह अपने द्वारा उपस्थित उपयुक्त हेतु के द्वारा या अपने से उत्पन्न हेतु के ज्ञान द्वारा ही अनुमिति का कारण है, अतः अनुमान परार्थ है । (प्र. ) इस प्रकार तो जहाँ हेतु का ज्ञान प्रत्यक्ष के ज्ञापक शब्द के द्वारा उत्पन्न होगा, वहाँ प्रत्यक्ष प्रमाण भी ( परार्थ ) अनुमान होगा? ( उ०) यह आपत्ति नहीं है, क्योंकि ऐसे स्थलों में कहीं भी शब्दों का प्रयोग लोक में नहीं देखा जाता है। यह कहा गया है कि परार्थानुमान के उत्पादक महावाक्य के पाँच अवयव हैं। किन्तु वे पाँच अवयव कोन कौन हैं ? इस प्रश्न का समाधान 'अवयवाः पुनः प्रतिज्ञापदेशनिदर्शनानुसन्धानप्रत्याम्नायाः' इस वाक्य के द्वारा किया गया है। इस वाक्य में 'पुनः' शब्द का प्रयोग केवल वाक्य को अलकृत करने के लिए है। 'तत्र' अर्थात् उन पाँचों अवयवों में प्रतिज्ञा का यह लक्षण किया गया है, 'अनुमेयोद्देशोऽविरोधी प्रतिज्ञा' । 'प्रतिपिपादयिषित' इत्यादि ग्रन्थ के द्वारा प्रतिज्ञा के उस ( अपने ) लक्षण वाक्य की ही For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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