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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [ गुणेऽनुमानेऽवयव
प्रशस्तपादभाष्यम् तत्रानुमेयोद्देशोऽविरोधी प्रतिज्ञा । प्रतिपिपादयिषितधर्मविशिष्टस्य धर्मिणोपदेशविषयमापादयितुमुद्देशमानं प्रतिज्ञा ।
इनमें 'अनुमेय' का अर्थात् अनुमान के लिए अभिप्रेत विषय का प्रतिपादक वह वाक्य ही प्रतिज्ञा' है, जिसका और किसा भी प्रमाण से विरोध न रहे। ( विशदार्थ यह है कि ) जिस धर्म (साध्य) का प्रतिपादन पक्ष में अभिप्रेत हो उस धर्म ( साध्य ) से युक्त धर्मी ( पक्ष ) ही अनुमेय है। ( साध्य से युक्त उस ) धर्मी ( पक्ष ) में हेतु के सम्बन्ध को दिखलाने के लिए प्रयुक्त ( साध्य से युक्त पक्ष के बोधक ) वाक्य ही 'प्रतिज्ञा' हैं।
न्यायकन्दली विशिष्टो धर्मी अनुमेयः पक्ष इति कथ्यते। तस्य यदुद्देशमा सङ्कीर्तनमात्रं साधनरहितं सा प्रतिज्ञेति । यथोपदिशन्ति सन्त:--
"वचनस्य प्रतिज्ञात्वं तदर्थस्य च पक्षता" इति ।
यदि हेतुरहितमुद्देशमात्रं प्रतिज्ञा नैव तस्याः साध्यसिद्धिरस्तीति असाधनाङ्गत्वान्न प्रयोगमर्हति । यथा वदन्ति तथागताः--
शक्तस्य सूचकं हेतुर्वचोऽशक्तमपि स्वयम् ।। साध्याभिधानात् पक्षोक्तिः पारम्पर्येण नाप्यलम् ।। इति ।
तत्राह-अपदेशविषयमापादयितुमिति । अपदेशो हेतुस्तस्य विषयमाश्रयमापादयितुं प्रतिपादयितुं प्रतिज्ञाने', (न) खलु यत्र क्वचन साध्यसाधनाय व्याख्या भाष्यकार स्वयं करते हैं। जिस धर्म ( वस्तु ) का प्रतिपादन ( पञ्चावयव वाक्य के प्रयोक्ता को ) अभिप्रेत हो उस धर्म से युक्त धर्मी ही 'अनुमेय' या 'पक्ष' कहलाता है । उसका जो 'उद्देशमात्र' केवल कथन अर्थात् हेतु वाक्य के सांनिध्य से रहित वाक्य का प्रयोग हो 'प्रतिज्ञा' है । जैसा कि विद्वानों का कहना है कि "उक्त वाक्य ही प्रतिज्ञा है और प्रतिज्ञा वाक्य के द्वारा कथित अर्थ ही पक्ष है" ।
(प्र.) यदि हेतु वाक्य से सर्वथा असम्बद्ध केवल पक्ष का बोधक वाक्थ ही प्रतिज्ञा है, तो फिर साध्य सिद्धि का उपयोगी अङ्ग न होने से उसका प्रयोग ही उचित नहीं है। जैसा कि तथागत के अनुयायियों का कहना है कि--हेतु ही साध्य का ज्ञापक है । ( केवल प्रतिज्ञा रूप ) वचन में साध्य को समझाने का सामर्थ्य नहीं है, अतः परम्परा से साध्य को उपस्थित करने के कारण भी प्रतिज्ञा अनुमान का अङ्ग नहीं है । इसी आक्षेप के समाधान के लिए 'अपदेशविषयमापादयितुम्' यह वाक्य लिखा गया है । 'अपदेश' शब्द का अर्थ है 'हेतु' उसका 'विषय' अर्थात् आश्रय के 'आपादन' के लिए
१. मुद्रित पुस्तक में यहाँ न्यायकन्दली का पाठ है 'अपदेशी हतुः तस्य विषय. माश्रय मापादयितु प्रतिज्ञाने यत्र क्वचन सध्यसाधनाय हेतुः प्रयुज्यते तस्य सिद्धत्वात्, अपि च कम्मिश्चिमिणि प्रतिनियते" इसमें 'यत्र क्वचन' इत्यादि का उत्तर वाक्य में
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