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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir __ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणेऽनुमानेऽभावप्रमाणान्तर्भाव न्यायकन्दली सम्भवात्, एतावता विशेषेण योग्यानुपलम्भः प्रतिपादको नापरः। एवं सत्यभावो लिङ्गमेव स्यादविनाभावग्रहणसापेक्षत्वात् । तदनपेक्षत्वे त्वविशेषण तस्याभावस्याभावबोधकत्वमिति दुनिवारणप्रसङ्गः।। ___ अपि चेन्द्रियसन्निकर्षादुपलभ्यमाने भूतलेऽभावज्ञानमपि भवति 'अघटं भूतलम्' इति, तत्र भूतलस्येवाभावस्यापि प्रत्यक्षता किं नेष्यते ? भावांशेनैवेन्द्रियस्य सम्बन्धः, योग्यत्वादिति चेत् ? नेदमनुपपादितं सिध्यति। कार्यगम्या हि योग्यता, यथेन्द्रियान्वयव्यतिरेकानुविधायि कार्य भावे दृश्यते, तद्वदभावेऽपीति भाववदभावोऽपि इन्द्रियग्रहणयोग्य एव । कार्यदर्शनादेव चास्येन्द्रियसम्बन्धोऽपि कश्चित् कल्पयिष्यते। तो समझते हैं कि वहाँ वह वस्तु नहीं है, इस प्रकार योग्यानुपलब्धि के साथ योग्य वस्तु के अभाव की व्याप्ति है, प्रत्यक्ष के अयोग्य वस्तुओं के अभाव के साथ उस वस्तु की अनुपलब्धि की व्याप्ति नहीं है, (अर्थात् व्यभिचार है), क्योंकि (अयोग्य पिशाचादि) ज्ञेयों के रहने पर भी उनकी उपलब्धि नहीं होती है, (अर्थात् अनुपलब्धि रहती है), इससे यह निष्कर्ष निकला कि योग्य वस्तुओं की अनुपलब्धि हो उसके अभाव का ज्ञापक है, अयोग्य वस्तुओं की अनुपलब्धि नहीं। अतः उक्त अभाव प्रमाण भी उक्त प्रमेयाभाव का ज्ञापक हेतु ही है, क्योंकि व्याप्ति के द्वारा ही उसका ज्ञापन कर सकता है, अन्यथा नहीं । यदि उसमें व्याप्ति की अपेक्षा न मानें तो सभी अभावों से सभी अभाबों की प्रतीति की आपत्ति होगी, जिसका वारण करना सम्भव न होगा। दूसरी बात यह है कि इन्द्रिय के द्वारा भूतल के उपलब्ध होने पर ही 'अघटं भूतलम्' इत्यादि आकारों से अभाव की प्रतीति भी होती है। यदि ऐसी बात है तो फिर भूतल की तरह उसमें विशेषण रूप से भासित होनेवाले घट के अभाव का इन्द्रिय के द्वारा प्रत्यक्ष ही क्यों नहीं मान लेते ? (प्र०) भाव पदार्थ ही इन्द्रियों से प्रकाशित होने की क्षमता रखते हैं, अतः (कल्पना करते हैं कि) भाव पदार्थों के साथ ही इन्द्रियों का ( प्रत्यक्षोपयुक्त ) सम्बन्ध हो सकता है। ( उ.) (भाव पदार्थों में इन्द्रियों के प्रत्यक्षोपयुक्त सम्बन्ध को योग्यता है' यह सिद्धान्त ) युक्ति के द्वारा उपपादन किये बिना नहीं माना जा सकता। कार्य से हो कारण में कार्योत्पादन की योग्यता निर्धारित होती है। जिस प्रकार भाव पदार्थों के प्रत्यक्ष रूप कार्य के साथ इन्द्रियों का अन्वय और व्यतिरेक दोनों देखे जाते हैं, उसी प्रकार अभाव की उपलब्धि के साथ भी वे दोनों देखे जाते हैं, अतः भाव पदार्थो की तरह अभाव पदार्थों में भी इन्द्रियों से गृहीत होने की योग्यता है । इस प्रकार इन्द्रियों से अभाव के प्रत्यक्ष की उपपत्ति हो जाने पर अभाव पदार्थों के साथ भी इन्द्रियों के किसी उपयुक्त सम्बन्ध की कल्पना कर ली जाएगी। For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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