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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ५४३ प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् एवमनुत्पन्न कार्य कारणासद्भावे लिङ्गम्। प्रकार उत्पन्न कार्य अपने कारण की सत्ता का ज्ञापक हेतु है, उसी प्रकार अनुत्पन्न कार्य भी अपने कारण की असत्ता का ज्ञापक हेतु ही है। न्यायकन्दली आह-यथोत्पन्नं कार्य का रणसद्भावे लिङ्गम् , एवमनुत्पन्नं कार्य कारणासद्भावे लिङ्गम् । योऽप्यभावं प्रमाणमिच्छति, तस्यापि न ज्ञानानुत्पादमात्रात् प्रमेयाभावज्ञानम्, स्वरूपविप्रकृष्टस्यापि वस्तुनोऽभावप्रतीतिप्रसङ्गात् । किन्तु ज्ञानकारणेषु सत्सु ज्ञानयोग्यस्य वस्तुनो ज्ञानानुत्पादोऽभावावगमनिमित्तम् । न चायोग्यानुपलम्भाद् योग्यानुपलम्भस्य कश्चित् स्वरूपतो विशेषः, अभावस्य निरतिशयत्वात्। तेन नायं स्वशक्त्यैवेन्द्रियवद् बोधकः, किन्तु योग्यानुपलम्भो ज्ञेयाभावं न व्यभिचरति । अयोग्यानुपलम्भस्तु व्यभिचरति, सत्यपि ज्ञेये तस्य प्रमाणों की अनुत्पत्ति रूप कहते हैं, उनके इस मत का खण्डन ही 'अभावोऽप्यनुमानमेव' इत्यादि भाष्यसन्दर्भ के द्वारा किया गया है। किस युक्ति से यह अभाव नाम का प्रमाण मानते हैं ? इसी प्रश्न का उत्तर 'यथोत्पन्न कार्य कारणसद्भावे लिङ्गम् एवमनुत्पन्न कार्य कारणासद्भावे लिङ्गम्' इस वाक्य के द्वारा किया गया है । जो सम्प्रदाय उक्त अभाव को स्वतन्त्र प्रमाण मानने को इच्छुक हैं, उन्हें भी ज्ञान की केवल अनुत्पत्ति से ही किसी वस्तु के अभाव का ज्ञान नहीं होता, यदि ऐसी बात हो तो उन वस्तुओं के अभावों की भी प्रतीति की आपत्ति होगी, जिन वस्तुओं में प्रत्यक्ष की योग्यता नहीं है। अतः (उन्हें भी) यही कहना पड़ेगा कि ज्ञान के (सामान्य) कारणों के रहने पर ज्ञात होने योग्य वस्तुओं के ज्ञान की अनुत्पत्ति ही उन वस्तुओं के अभाव का ज्ञापक 'अभाव' नाम का प्रमाण है। (उपलब्धि के) योग्य वस्तुओं की अनुपलब्धि और (उपलब्धि के) अयोग्य वस्तुओं की अनुपलब्धि इन दोनों के स्वरूपों में कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जिससे कि दोनों अनुपलब्धियों में भेद माना जाय, क्योंकि केवल अभाव रूप दोनों अनुपलब्धियों में कोई विशेष धर्म नहीं है। अतः अभाव (या प्रमाणों को कथित अनुत्पत्ति) उस प्रकार केवल अपनी ही शक्ति से अपने ज्ञेय अभाव के ज्ञान को उत्पन्न नहीं कर सकते, जिस प्रकार इन्द्रियाँ केवल अपनी शक्ति से ही प्रत्यक्ष ज्ञान को उत्पन्न करती है। कथित अभाव प्रमाण से वस्तुओं के अभाव की प्रतीति की यह रीति है कि जिस वस्तु की जहाँ उपलब्धि हो सकती है, वहाँ यदि उसकी उपलब्धि नहीं होती है, For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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