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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् शरदि जलप्रसादोऽगस्त्योदयस्येति । एवमादि तत् सर्वमस्येदमिति सम्बन्धमात्रवचनात् सिद्धम् । स्वच्छता अगस्त्य नाम के नक्षत्र के उदय का ज्ञापक होती है । ( व्याप्ति के प्रयोजक) कथित कार्यत्वादि सम्बन्धों से भिन्न इन वस्तुओं में व्याप्ति के प्रयोजक अवशिष्ट सभी सम्बन्धों का संग्रह सूत्रकार ने उक्त सूत्र के ‘अस्येदम्' इस वाक्य के द्वारा किया है । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ५०५ न्यायकन्दली भूतस्य ओं इति श्रावयन्तमध्वर्यु प्रतीत्य कुड्या दिव्यवहिते होतरि अनुमानं होताप्यत्रास्तीति । न चाध्वर्युः होतुः कार्यं न कारणं न संयोगे (गी) न च विरोधे (धी) न समवाये (यो) चेति व्यतिरेकः । For Private And Personal उदाहरणान्तरमाह – चन्द्रोदयः समुद्रवृद्धेरित्यादि । यदा चन्द्र उदेति तदा समुद्रो वर्द्धते कुमुदानि च विकसन्तीति नियमो येनावगतः, तस्य चन्द्रोदयः समुद्रवृद्धेः कुमुदविकासस्य च लिङ्गं स्यात् । न च चन्द्रोदयः समुद्रवृद्धिकुमुदविकासयोः कार्यम् । उदयो हि चन्द्रस्य विशिष्टदेशसंयोगः, स च चन्द्रक्रियाकार्य:, न समुद्रवृद्धयादिनिमित्तः । न चायं समुद्रवृद्धेः कारणं नापि कुमुदविकासस्य, उत्कल्लोललक्षणाया वृद्धेः, पत्राणां परस्परविभागलक्षणस्य देखता है और दीवाल से छिपे रहने के कारण होता को नहीं देखता, तब भी 'होता' का यह अनुमान उसे होता है कि यहाँ होता भी अवश्य हैं । किन्तु अध्वर्युरूप हेतु होतारूप साध्य का न कार्य है, न कारण न संयोगी है, न विरोधी और न समवायी । अतः ( सूत्र में कथित कार्यत्वादि सम्बन्धों में से अध्वर्युं में होता का कोई भी सम्बन्ध नहीं है, किन्तु उक्त अध्वर्युं से होता का अनुमान होता है, अत: 'कथित कार्यत्वादि सम्बन्ध के कारण ही हेतु ज्ञापक होता है' इस नियम में यही व्यतिरेक व्यभिचार है ) । 'चन्द्रोदयः समुद्रवृद्धे:' इस वाक्य के द्वारा भाष्यकार ने उक्त व्यतिरेक व्यभिचार का दूसरा उदाहरण कहा है। 'जिस समय चन्द्रमा का उदय होता है, उस समय समद्र बढ़ जाता है और कुमुद के पुष्प प्रफुल्लित हो जाते हैं । यह नियम जिस पुरुष को ज्ञात है, उसके लिए चन्द्रमा का उदय समुद्रवृद्धि और कुमुदिनी के विकास का अवश्य ही ज्ञापक लिङ्ग होगा, किन्तु चन्द्रमा का उदय न समुद्र की वृद्धि से उत्पन्न होता है, न कुमुद के विकास से, क्योंकि चन्द्रमा का किसी विशेष देश के साथ संयोग ही चन्द्रमा का उदय है, चन्द्रमा का यह संयोग चन्द्रमा में रहनेवाली क्रिया से ही उत्पन्न होगा, समुद्र की वृद्धि प्रभृति कारणों से नहीं, ( अतः चन्द्रमा का उदय समुद्रवृद्धि का या कुमुद के कार्य नहीं है ) एवं चन्द्रमा का उदय न समुद्र की वृद्धि का कारण है, विकाश का, क्योंकि समुद्र को वृद्धि है उसका उफान एवं कुमुद का ૧૪ विकास का न कुमुद के विकास है
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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