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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ( ४५ ) वैशेषिक सूत्र की अर्वाचीन टीकाएँ हैं । इन दोनों में भी उक्त पाँच सूत्र हैं । इन उपपत्तियों से अपने निर्णय पर पहुँचने के बाद मैंने चौखम्बा सिरीज से प्रकाशित शङ्कर मिश्र कृत 'कणादरहस्य' के अन्त में चन्द्रकान्त तर्कालङ्कार महाशय कृत वैशेषिक दर्शनभाष्य की एक आलोचना छपी देखी है, आलोचक का नाम उसमें नहीं है, इस आलोचना के अन्त में स्वतन्त्र रूप से इन पाँच सूत्रों का उल्लेख किया गया है, और व्याख्या लिखी गय है । और उन्होंने लिखा है कि 'अभाव को कणाद के द्वारा अस्वीकृति का जो आक्षेप किया जाता है, उसके निराकरण के लिए ही मैंने इन सूत्रों की व्याख्या की है' । अतः इन पाँच सूत्रों की प्रामाणिकता में कोई सन्देह नहीं हे । ये सूत्र हैं— ( १ ) क्रियागुणव्यपदेशाभावात् ( ६-१-१ ) । उत्पत्ति से पहिले ( घटादि कार्य ) असत् हैं, क्योंकि उस समय उनमें क्रियाओं का और गुणों का व्यवहार नहीं होता । ( २ ) सदसत् (९-१-२ ) । पहिले से विद्यमान मी घटादि कार्य नाश के वाद असत् हैं ( क्योंकि नाश के बाद भी उनमें गुणक्रियादि का व्यवहार नहीं होता ) । ( ३ ) असत: क्रियागुणव्यपदेशाभावादर्थान्तरम् । अविद्यमान पदार्थों में यतः गुणक्रियादि का व्यवहार नहीं होता है, अतः अभाव पदार्थ द्रव्यादि भावपदार्थों से भिन्न पदार्थ है । (४) सच्चासत् ( ६-१-४) । सत् अर्थात् विद्यमान घटादि का भी प्रतिपेध होता है (यह प्रतिषेध ही अन्योन्याभाव है ) । (५) यच्चान्यदसतस्तदसत् ( ६-१-५) । कथित तीनों प्रकार के अभावों से भिन्न अभाव भी हैं (यही अत्यन्ताभाव है ) । इनमें तीसरे सूत्र से अभाव को द्रव्यादि छः पदार्थों से भिन्न ठहराया गया है, और शेष चार सूत्रों में से पहिला प्रागभाव का, दूसरा ध्वंस का चौथा अन्योन्याभाव का एवं पाँचवाँ अत्यन्ताभाव का ज्ञापक है । अतः इन सूत्रों के द्वारा अभाव का इत्यादि छः पदार्थों से स्वातन्त्र्य और उसके प्रागभावादि चारों भेद सुव्यवस्थ हैं । सुतराम् उद्देश्य सूत्र में अभाव पदार्थ का पृथक रूप से उल्लेख न रहने के कारण सूत्रकार के ऊपर न्यूनता का ही आक्षेप कथञ्चित् हो सकता है । इससे अभाव के प्रसङ्ग उनकी असम्मति नहीं मानी जा सकती । उपसंहार सूत्रों के अनुसार भी उपक्रम सूत्र में ह्रासवृद्धि अनेक स्थानों में देखी जाती है । इसरी बात यह है कि मिथिलाविद्यापीठ से और बड़ौदा से जो वैशेषिकसूत्र छपे हैं, उन दोनों में ही " द्रव्यगुणकर्मसामान्यविशेषसमवायानाम्" इत्यादि उद्देशसूत्र हैं ही नहीं । अतः इस सूत्र का प्रामाण्य ही सन्दिग्ध है । अतः सन्दिग्धप्रामाण्यवाले सूत्र के द्वारा किसी निश्चित परिणाम पर नहीं पहुँचा जा सकता । वैशेषिक दर्शन के प्रसङ्ग में पट्पदार्थ प्रतिपादक और जितने भी वाक्य हैं, वे सभी कथित बैशेषिक सूत्रों से दुर्बल ही हैं । अतः प्रवादों के बल पर अभाव की वैशेषिकशास्त्रीय स्वीकृति काटी नहीं जा सकती है । For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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