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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ( ४४ ) ही घटाभाव की प्रतियोगिता की स्थिति का नियामक है। एवं घटाभाव की प्रतियोगिता घटत्व से नियम्य है । वस्तुतः नियामकत्व ही अवच्छेदकत्व है और नियम्यत्व ही अवच्छिन्नत्व है। इस दृष्टि से यद्यपि 'अच्छेदक' पद के स्थान में 'नियामक' पद का और 'अवच्छिन्न' पद के स्थान में नियम्य' पद का भी प्रयोग किया जा सकता है, किन्तु 'अवच्छेदक' पद ही उक्त अर्थ में परम्परा से प्रयुक्त है, अतः उसके स्थान में दूसरे पदों की प्रयुक्ति से झटिति बोध में बाधा पहुँचेगी और अप्रयुक्तत्व दोष प्रयोक्ता के ऊपर आ पड़ेगा। सप्तपदार्थी इधर वैशेषिकदर्शन के मूर्द्धन्य प्रकरण ग्रन्थों के प्रभाव से विद्वानों की यह धारणा चली आ रही है कि महर्षि कणाद और उनके अनुयायी द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय और अभाव इन सात पदार्थों की सत्ता मानते थे । किन्तु महर्षि कणाद ने "धर्मप्रसूताद् द्रव्यगुणकर्मसामान्य विशेषसमवायानां पदार्थानां साधर्म्यवैधानां तत्त्वज्ञानानिःश्रेयसम्" ( अ-आ-१-सू० ४ ) इस पदार्थोद्देश्य सूत्र में पदार्थ का उल्लेख नहीं किया है। एवं वैशेषिक दर्शन के सब से प्रामाणिक भाष्यकार प्रशस्तपाद ने भी अभाव पदार्थ का उल्लेख नहीं किया है। एवं विपक्षियों के धर्म व्याख्यातुकामस्य षट्पदार्थोपवर्णनम् । सागरं गन्तुकामस्य हिमवद्गमनोपम् ॥ (अर्थात् "धर्म की व्याख्या के लिए प्रवृत्त पुरुष के द्वारा छः पदार्थों का वर्णन वैसा ही अयुक्त है जैसा कि समुद्र की ओर जानेवाले पुरुष के लिए हिमालय पर जाना अयुक्त है)।" इत्यादि उक्तियों से भी इस धारणा को बल मिला है कि महर्षि कणाद द्रव्यादि छः भावपदार्थों को ही मूलतः मानते थे । पीछे आकर उपपत्ति की दृष्टि से आवश्यक समझकर आचार्यों ने 'अभाव' को भी वैशेषिक दर्शन के द्वारा अभिमत स्वतन्त्र पदार्थों में गणना कर ली, और तब से ही वैशेषिकदर्शन को सप्तपदार्थवादी माना जाने लगा। अत एव किरणावलीकार उदयनाचार्य न्यायकन्दलीकार श्रीधर भट्ट, न्यायलीलावतीकार वल्लभाचार्य प्रभृति वैशेषिकदर्शन के सभी प्रमुख आचार्यों को इसकी उपपत्ति देनी पड़ी है कि "पदार्थोद्देश" सूत्र में अभाव पदार्थ की अनुक्ति से उसका महर्षि कणाद के द्वारा अस्वीकृति का समर्थन नहीं किया जा सकता। किन्तु महर्षि कणाद के द्वारा निर्मित सूत्रों में निम्नलिखित पाँच सूत्र ऐसे हैं, जिनसे अभाव पदार्थ का स्वातन्त्र्य और उसके प्रागभावादि चार भेदों का स्पष्टतः उल्लेख है। एवं ये पाँच सूत्र उन सभी सत्र व्याख्याताओं के द्वारा स्वीकृत है जो अभी तक उपलब्ध हैं। कणाद सूत्र की अभीतक तीन प्राचीन स्वतन्त्र टीकाएँ उपलब्ध है (१) अनेकशः प्रकाशित शङ्कर मिश्र कृत उपस्कार टीका, (२) मिथिला विद्यापीठ के द्वारा प्रकाशित अज्ञातनामा किसी दाक्षिणात्य विद्वान् की टीका, एवं (३) बड़ौदा से प्रकाशित चन्द्रानन्द पंडित कृत टोका। इन सभी टीकाकारों के द्वारा ये पाँच सूत्र स्वीकृत हैं और इनकी व्याख्या भी प्रायः उक्त सभी टीकाओं में एक सी है । पं. जयनारायण तर्कपञ्चानन की विवृति और चन्द्रकान्त तर्कालङ्कार के भाष्य ये दो For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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