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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ૪૪ www.kobatirth.org न्यायकन्दली संवलितप्रशस्तपादभाष्यम् न्यायकन्दलो सविकल्पकं सामान्यविशेषरूपतां स्यात्मनोऽनुवृत्तिव्यावृत्ती भूतप्रतित्युपपत्तेः । सौगता: प्रत्येति धर्मो " Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रतिपद्यमानस्येन्द्रियद्वारेण पुनरेवमाहुः - स्वलक्षणान्वयव्यतिरेकानुविधायिप्रतिभासं निर्विकल्पकं वस्तुन्यस्रान्तम्, अतस्तदेव प्रत्यक्षं न सविकल्पकम्, तस्य वासनाधीनजन्मनो वस्त्वननुरोधिप्रतिभासस्य केशादिज्ञानवद् वस्तुनि भ्रान्तत्वादिति । तेषां मतं निराकतु सविकल्पकस्यापि प्रत्यक्षतामाहसामन्येत्यादि । [ गुणे प्रत्यक्ष पिण्डान्तरमनुसन्दधान तस्मात् सामान्यं च विशेषश्च द्रव्यं च गुणश्च कर्म च सामान्यविशेषद्रव्यगुणकर्माणि, सामान्यविशेषद्रव्यगुणकर्माण्येव विशेषणानि सामान्यविशेषद्रव्यगुणकर्म विशेषणानि तान्यपेक्षते य आत्ममनः सन्निकर्षः, सद्रव्यमिति सामान्यविशिष्टम् । पृथिवीति पृथिवीत्वविशिष्टम् विषाणीति द्रव्यविशिष्टम्, शुक्लो गौरिति गुणविशिष्टम्, गच्छतीति कर्मविशिष्ट प्रत्यक्षं स्थात् । चतुष्टयसन्निकर्षादित्यनेनैवात्ममनः संयोगे लब्धे तथा सकती है जिसे निर्विकल्पक ज्ञान में भासित होनेवाले उसके सजातीय पिण्डों का अनुसन्धान रहे एवं ( जिसका निर्विकल्पक ज्ञान हो एवं जिसका उक्त अनुसन्धान हो इन ) दोनों में अनुवृत्ति प्रत्यय के कारणीभूत सामान्य और व्यावृत्ति प्रत्यय के कारणीभूत विशेष दोनों का ज्ञान भी रहे । For Private And Personal बौद्धों का कहना है कि निर्विकल्पक ज्ञान ही प्रत्यक्ष प्रमाण हैं सविकल्पक ज्ञान नहीं, क्योंकि निर्विकल्पक ज्ञान के ही साथ विषय के स्वलक्षण ( असाधारणधर्म ) का अन्वय और व्यतिरेक है, अतः वही अपने विषय में अभ्रान्त है । चूंकि सविकल्पक ज्ञान वासना के अधीन है. वह अपनी उत्पत्ति के लिए विषयवस्तु का अनुरोध नहीं रखता । अतः केशराशि के ज्ञान की तरह सविकल्पक ज्ञान अपने विषयवस्तु में भ्रान्त है । बौद्धों के इस मत को खण्डित करने के लिए ही 'सामान्य' इत्यादि ग्रन्थ से 'सविकल्पकज्ञान भी प्रत्यक्ष प्रमाण है' यह उपपादन किया गया है । सामान्यश्च विशेषश्च द्रव्यश्च गुणश्च कर्म च सामान्यविशेषद्रव्यगुणकर्माणि, ( द्वन्द्व ) सामान्यविशेषद्रव्यगुणकर्माण्येव विशेषणानि सामान्यविशेषद्रव्यगुणकर्मविशेषणानि ( कर्मधारय ), तान्यपेक्षते यः आत्ममनः संनिकर्षः, तस्मात्' इस व्युत्पत्ति के अनुसार सामान्य, विशेष, द्रव्य, गुण, और कर्म स्वरूप विशेषणों के साहाय्य से आत्मा और मन के संनिकर्ष के द्वारा 'सद् द्रव्यम्' इस आकार का सत्ता ( सामान्य ) विशिष्ट द्रव्य का ज्ञान, 'इयं पृथिवी' इस आकार का पृथिवीत्व रूप विशेष प्रकारक ज्ञान, 'अयं विषाणी' इस आकार का द्रव्य विशेषणक ज्ञान, 'शुक्लो गो:' इस आकार का गुणविशेषणक ज्ञान, 'गौर्गच्छति' इस आकार का कर्मप्रकारक ज्ञान, ये जितने भी ज्ञान उत्पन्न होते हैं, वे सभी
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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