SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 435
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३६० न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [ गुणे संयोग प्रशस्तपादभाष्यम् विभूनां तु परस्परतः संयोगो नास्ति, युतसिद्धयभावात् । सा पुनईयोरन्यतरस्य वा पृथग्गतिमत्वं पृथगाश्रयाश्रयित्वं चेति । अव्याप्यवृत्ति एवं अन्यतरकर्मज ही हैं । आकाशादि विभ द्रव्यों में परस्पर संयोग हैं ही नहीं, क्योंकि उन सवों की युतसिद्धि नहीं है। दोनों (प्रतियोगी और अनुयोगी) में एक को स्वतन्त्रगतिशीलता और दोनों में से प्रत्येक में स्वतन्त्र रूप से किसी के आश्रय होने की या कहीं आश्रित होने की योग्यता ही 'युतसिद्धि' है। _ न्यायकन्दली नोऽप्याकाशस्य परमाणुना सह संयोगविभागौ परमाणकर्मजौ भवतः, तयोरव्याप्यवृत्तित्वादिति न परमाण्वाकाशसंयोगस्य नित्यता । इदं तावदित्थं परिहृतम्, विभूनां परस्परत: संयोगे का प्रतिक्रिया ? न ह्यसावन्यतरकर्मजः, नाप्युभयकर्मजः, तेषां निष्क्रियत्वात् । नापि संयोगजः, कार्यस्य हि कारणसंयोगिना अकारणेन संयोगजः संयोगो भवति । न चायं विभूनामुपपद्यते, नित्यत्वात् । अस्ति च तेषां संयोग आकाशममूर्तेनापि द्रव्येण समं संयुज्यते मूर्तद्रव्यसंयोगित्वात् पटवदित्यनुमानात् प्रतीतः। स चाकारणवन्नित्यं तस्मादनुपपन्नमिदम्, अजः संयोगो नास्तीति । तत्राह-विभूनामिति । निष्क्रिय होने पर भी, परमाणु के क्रियाशील होने के कारण) हो सकता है, क्योंकि संयोग और विभाग दोनों ही अव्याप्यवृत्ति हैं। अतः परमाणु और आकाश का संयोग (दोनों के नित्य होने पर भी परमाणुगत क्रिया के अनित्य होने के कारण) नित्य नहीं है । संयोग के नित्यत्व के पक्ष में आयी हुई आपत्ति का उद्धार उसके समर्थक इस प्रकार करते हैं कि (परमाणु और आकाश के संयोग में नित्यत्व अनिवार्य न होने पर भी) विभु द्रव्यों के परस्पर संयोग में (नित्यत्व मानने के सिवाय) क्या समाधान करेंगे? क्योंकि विभु द्रव्यों के संयोग न अन्यत र कर्मज हो सकते हैं, न उभयकर्मज, क्योंकि वे सभी क्रिया से रहित हैं । संयोग से भी (विभु द्रव्य का दूसरे विभु द्रव्य के साथ संयोग) नहीं उत्पन्न हो सकता, क्योंकि सयोगजसंयोग किसी कार्य द्रव्य का उसके अकारणीभूत द्रव्य के ही साथ होता है जिसमें उस कार्य द्रव्य के कारणीभूत द्रव्य का संयोग रहता है। विभु द्रव्य तो नित्य ही होते हैं, अतः उनका कोई कारण ही नहीं है, तस्मात् उनका परस्पर संयोगजसंयोग नहीं हो सकता। किन्तु विभु द्रव्यों में परस्पर संयोग अवश्य ही होता है, क्योंकि इस प्रसङ्ग में यह अनुमान प्रमाण है कि जिस प्रकार पटादि द्रव्य घटादि मूर्त द्रव्यों के साथ संयुक्त होने पर आकाशादि अमूर्त द्रव्यों के साथ भी संयुक्त होते हैं, उसी प्रकार आकाशादि विभु द्रव्य भी दिगादि अमूर्त (विभु) द्रव्यों के साथ भी अवश्य ही संयुक्त होते हैं, क्योंकि उनमें घटादि मूर्त द्रव्यों का संयोग है (जो मूर्त द्रव्यों के साथ संयुक्त होगा, वह अमूर्त द्रव्यों के साथ भी संयुक्त होगा हो), किन्तु (इस प्रकार से For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy