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प्रकरणम् ]
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भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम्
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विनाशस्तु
सर्वस्य
संयोगस्यैकार्थसमवेताद्विभागात्,
क्वचिदाश्रयविनाशादपि । कथम् ? यथा तन्त्वोः संयोगे सत्यन्यतर
संयोग के आश्रयरूप एक अधिकरण में समवाय सम्बन्ध से रहनेवाले विभाग से ही सभी संयोगों का विनाश होता है, किन्तु कहीं कहीं आश्रय के विनाश से भी संयोग का विनाश होता है । ( प्र० ) कैसे ? ( उ० ) जब दो तन्तुओं के
न्यायकन्दली
यत्र युतसिद्धस्तत्रैव संयोगो दृष्टः । युतसिद्धिश्चाकाशादिषु नास्ति, अतो व्यापकाभावात् संयोगोऽपि तेषु न भवति । यच्च संयोगप्रतिपादकमनुमानमुक्तम्, तदसाधनम्, उभयपक्षसमत्वात् । यथेदं विभूनां संयोगं शास्ति, तथा ताभ्यामेव हेतुदृष्टान्ताभ्यां विभागमपि । अस्तु द्वयोरप्युपपत्तिः प्रमाणेन तथाभावप्रतीतेरिति चेन्न, संयोगविभागयोरेकस्य नित्यत्वेऽन्यतरस्यासम्भवादिति द्वयोरप्यसिद्धिः परस्परप्रतिबन्धात् ।
ar hi सिद्धिर्यस्या अभावाद्विभूनां संयोगो न सिद्ध्यति ? अत्राह - सा पुनरिति । द्वयोरन्यतरस्य वा पृथग्गमनं युतसिद्धिनित्यानाम्, द्वयोरन्यतरस्य परस्परनिष्पन्न विभु द्रव्यों के ) संयोग का कोई कारण नहीं है, अतः वह नित्य है । सुतराम् यह कहना ठीक नहीं है कि ' (नित्य) संयोग नहीं है' इसी आक्षेप का खण्डन 'विभूनाम्' इत्यादि से करते है । संयोग उन्हीं दो द्रव्यों में देखा जाता है, जिनमें 'युत सिद्धि' रहती हैं । आकाशदिगादि विभु द्रव्यों में 'युत सिद्धि' नहीं है, अत: (युतसिद्धि रूप) व्यापक के अभाव से समझते हैं कि ( व्याप्य) संयोग भी उनमें नहीं है । आकाशादि विभु द्रव्यों में परस्परं संयोग के साधन के लिए जिस अनुमान का प्रयोग किया गया है. वह (विभु द्रव्य के ) नित्यसंयोग का ही साधक नहीं है, क्योंकि वह (विभुद्रय
के नित्य संयोग और नित्य विभाग) दोनों पक्षों में समान रूप से लागू हो सकता है । जिस हेतु से और जिस दृष्टान्त से वह विभुओं में संयोग का साधन कर सकता है, उसी हेतु से और उसी दृष्टान्त से वह विभुओं में विभाग का भी साधन कर सकता है । (प्र०) विभुओं में परस्पर संयोग और विभाग दोनों ही अगर प्रामाणिक हों, तो दोनों ही मान लिये जायें। ( उ० ) विभुओं के संयोग और विभाग दोनों में से किसी एक में नित्यत्व की सिद्धि हो जाने पर दूसरे में नित्यत्व को सिद्धि असम्भव है, क्योंकि वे दोनों परस्पर विरुद्ध हैं ।
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यह 'युत सिद्धि' कौन सी वस्तु है नहीं हो पाता ? ' सा पुनः' इत्यादि से किसी एक में गति का रहना दो नित्य
जिसके न रहने से विभु द्रव्यों में संयोग इसी प्रश्न का उत्तर देते हैं । दोनों में से वस्तुओं की युतसिद्धि है । अनित्य दो वस्तुओं की तसिद्धि के लिए यह आवश्यक है कि वे दोनों या दोनों में से एक भी कहीं
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