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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् २१३ न्यायकन्दली वस्तुनोः केनचिदंशेन संयोगात् केनचिदसंयोगात् सान्तरः संयोगः । निर्भागयोस्तु नायं विधिरवकल्पते। स्थूलद्रव्येषु प्रतीयमानेष्वन्तरं न प्रतिभात्येव, त्र्यणुकेष्वेवान्तरम्, तच्चानुपलब्धियोग्यत्वान्न प्रतीयत इति गुर्वोयं कल्पना। तस्मानिरन्तरा एव घटादयः। तेषामन्तस्तावदग्निपरमाणूनां प्रवेशो नास्ति यावत्पार्थिवावयवानां व्यतिभेदो न स्यात् । स्पर्शवति द्रव्ये तथाभूतस्य द्रव्यान्तरस्य प्रतीघाताद् व्यतिभिद्यमानेषु चावयवेषु क्रियाविभागादिन्यायेन द्रव्यारम्भकसंयोगविनाशादवश्यं द्रव्यविनाश इति कुतस्तस्याणुप्रवेशादभिव्यक्तिः । न च कार्यद्रव्येष्वाश्रयविनाशादन्यतो रूपादीनां विनाशः कारणगुणेभ्यश्चान्यत उत्पादो दृष्टः, तेनादि घटवह्निसंयोगाद्रूपादीनामुत्पत्तिविनाशौ न कल्प्येते । घटरूपादय आश्रयविनाशादेव नश्यन्ति कार्यद्रव्यगतरूपरसगन्धस्पर्शत्वाद् मुद्गराभिहतनष्टघटरूपादिवत् । तथा घटरूपादयः कारणगुणेभ्य होगी, क्योंकि दो परमाणुओं में इस प्रकार का संयोग असम्भव है (जिससे छिद्र युक्त द्वयणुक की उत्पत्ति सम्भव हो) क्योंकि दोनों परमाणु अगर संयुक्त हैं तो फिर उनमें अन्तर नहीं हो सकता। अनुयोी और प्रतियोगी के किसी अंश में संयोग एवं किसी अंश में असंयोग से ही अन्तरयुक्त संयोग होता है, निरंश परमाणुओं में उक्त संयोग की सम्भावना नहीं है। एवं प्रतीत होनेवाले स्थूल द्रव्यों में छिद्र देखा भी नहीं जाता। अब केवल एक कल्पना बच जाती है कि केवल यसरेणु रूप अवयवी में ही छिद्र है, किन्तु अतीन्द्रिय होने के कारण उसका प्रत्यक्ष नहीं होता है, किन्तु इस कल्पना में बहुत ही गौरव है। अत: घटादिद्रव्य छिद्रों से युक्त नहीं हैं। उनके भीतर अग्नि के परमाणुओं का प्रवेश तब तक सम्भव नहीं है, जब तक उनके अवयव विभक्त न हों जांय । स्पर्श से युक्त किसी द्रव्य में जब स्पर्श से युक्त किसी दूसरे द्रव्य का प्रतिघात होता है, तब उसके अवयव अवश्य ही विभक्त हो जाते हैं। फिर 'क्रिया से विभाग, विभाग से आरम्भक संयोग का नाश' इस रीति से आरम्भक संयोग के नाश के द्वारा अवयवी द्रव्य का भी नाश अवश्य ही होगा फिर अणुप्रवेश के बाद अग्नि के व्यापकसंयोग की उत्पत्ति कैसे होगी ? एवं कार्यद्रव्यों के रूपादि का नाश आश्रयनाश को छोड़कर और किसी कारण से नहीं देखा जाता है, इसी प्रकार कार्यद्रव्य के रूपादि की उत्पत्ति भी कारणों में रहनेवाले रूपादि से भिन्न किसी और कारण से नहीं देखी जाती है। इन सभी युक्तियों से भी घटादि कार्यद्रव्यों के रूपादि की उत्पत्ति घटादि कार्यद्रव्य और वह्नि के संयोग से कल्पित नहीं हो सकती । इस प्रकार यह अनुमान निष्पन्न होता है कि जिस प्रकार घटादिद्रव्यों के रूप रस, गन्ध एवं स्पर्श मुद्गरादि के प्रहार से उत्पन्न होते हैं, एवं घटादि कार्यद्रव्यों के नाश से ही नष्ट होते हैं, क्योंकि वे भी कार्यद्रव्य के रूपादि हैं, उसी प्रकार सभी कार्यद्रव्यों के For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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