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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६२ www.kobatirth.org न्याय कन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [ गुणेरूपादीनां पाकजोत्पत्ति प्रशस्तपादभाष्यम् Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir न च कार्यद्रव्य एव रूपाद्युत्पत्तिर्विनाशो वा सम्भवति, सर्वावयवेष्वन्तबहिश्च वर्त्तमानस्याग्निना व्याप्त्यभावात । अणुप्रवेशादपि च व्याप्तिनं सम्भवति, कार्यद्रव्यविनाशादिति । उस ( कच्चे स्थूल घटादि ) द्रव्यों में ही ( अग्निसंयोग से पाकज) रूपादि की उत्पत्ति या ( नीलादि पहिले ) रूपादि का विनाश नहीं हो सकता, क्योंकि बाहर और भीतर के सभी अवयव केवल बाहर में विद्यमाम अग्नि के संयोग से व्याप्त नहीं हो सकते । ( अग्नि के ) परमाणुओं से भी उक्त व्याप्ति नहीं हो सकती, क्योंकि इसके मानने पर भी कार्य द्रव्य का नाश मानना ही पड़ेगा । ? न्यायकन्दली सर्वेष्ववययेषु वर्त्तमानस्य समवेतस्यावयविनो बाह्ये वर्त्तमानेन वह्निना व्याप्तेर्थ्यापकस्य संयोगस्याभावात् कार्यरूपादीनामुत्पत्तिविनाशयोरक्लृप्तेरन्तर्बत्तिनामपाक प्रसङ्गादिति भावः । सच्छिद्राण्येवावयविद्रव्याणि । तत्र यदि नाम महतस्तेजोऽवयविनो नान्तःप्रवेशोऽस्ति तत्परमाणूनां ततो व्याप्तिर्भविष्यति ? तत्राह - अणुप्रवेशादपीति । न तावत्परमाणवः सान्तराः, निर्भागत्वात् । द्व्यणुकस्य सान्तरत्वे चानुत्पत्तिरेव तस्य परमाण्वोरसंयोगात् । संयुक्तौ चेदिमौ निरन्तरावेव | सभागयोहि अवयवों में 'वर्तमान' अर्थात् समवाय सम्बन्ध से रहनेवाले अवयवी में केवल बाहर रहनेवाले वह्नि की 'व्याप्ति' अर्थात् व्या कसंयोग ( बाहर और भीतर सभी अवयवों के साथ संयोग ) नहीं हो सकता । एवं कार्यद्रव्यों के रूपादि की उत्पत्ति और विनाश भी ( बिना कारण के ) नहीं हो सकते ( अतः आक्षेप करनेवाले के पक्ष में कथित व्यापकसंयोग रूप कारण के अभाव से ) भीतर के अवयवों में पाक ही उत्पन्न नहीं होगा ( फलतः भीतर की तरफ घटादि कच्चे ही रह जाएँगे ) | ( प्र० ) जितने भी अवयवो रूप द्रव्य हैं सभी छोटे छोटे छिद्रों से युक्त हैं, उन छोटे छिद्रों के द्वारा यद्यपि बड़े तेज - द्रव्य का प्रवेश सम्भव नहीं है, फिर भी तेज के परमाणुओं का प्रवेश उन छोटे छिद्रों से भी हो सकता है । इस प्रकार घट का विनाश न मानने पर भी ( अवयवी के बाहर और भीतर पाक का प्रयोजक ) कथित व्यापक वह्निसंयोग की उपपत्ति हो सकती है । इसी आक्षेप के समाधान में 'अणुप्रवेशादपि' इत्यादि वाक्य लिखते हैं । अभिप्राय यह है कि परमाणुओं के तो अंश हैं नहीं, जिससे कि वे छिद्रयुक्त होंगे ? द्वयणुकों को अगर छिद्र युक्त मानें तो फिर उनकी उत्पत्ति ही सम्भव नहीं For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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