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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
प्रशस्तपादभाष्यम्
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[ गुणसाधम्र्म्य वैधयं
क्रियाहेतवः ।
गुरुत्वद्रवत्ववेगप्रयत्नधर्माधर्मसंयोग विशेषाः रूपरसगन्धानुष्णस्पर्शंसङ्ख्यापरिमाणैक पृथक्त्व स्नेहशब्दानामसम
वायिकारणत्वम् ।
गुरुत्व, द्रवत्व, वेग, प्रयत्न, धर्म, अधर्म और विशेषप्रकार के संयोग से सात गुण क्रिया के कारण हैं ।
रूप, रस, गन्ध, अनुष्णाशीतस्पर्श, संख्या, परिमाण, एकपृथक्त्व, स्नेह और शब्द ये नौ गुण असमवायिकारण हैं ।
न्यायकन्दली
गुरुत्वादयः क्रियाहेतवः । गुरुत्वात्पतनं द्रवत्वात् स्यन्दनं वेगादिषोरुत्तरकर्माणि प्रयत्नाच्छरीरादिक्रिया धर्माधर्माभ्यामग्न्यादिक्रिया । विशिष्यते इति विशेषः, संयोग एव विशेषः संयोगविशेषः, विशिष्टः संयोगो नोदनाभिघात - लक्षण:, सोsपि क्रियाहेतुरिति वक्ष्यते ।
रूपादयः
शब्दान्ता असमवायिकारणम् ।
समवायिकारणप्रत्यासमवायिकारणसमवायः
सन्नमवधूत सामर्थ्यमसमवायिकारणम् । प्रत्यासत्तिश्च समवायिकारणैकार्थसमवायश्च । सुखादीनां समवायिकारणमात्मा, तत्र समवाया
में क्रिया को उत्पन्न करते हैं । धर्म और अधर्म अपने आश्रय में ( क्रमशः ) सुख और दुःख को एवं अपने आश्रय से भिन्न अग्नि प्रभृति में ऊर्ध्वज्वलनादि क्रिया को भी उत्पन्न करते हैं ।
ये गुरुत्वादि सात गुण क्रिया के उत्पादक हैं। इनमें गुरुत्व से पतनरूप क्रिया, द्रवत्व से प्रसरणरूप क्रिया, वेग से तीर प्रभृति की उत्तर क्रियायें, प्रयत्न से शरीर की क्रिया, धर्म और अधर्म से अग्नि प्रभृति में ऊध्र्वज्वलनादि क्रियायें होती हैं । 'संयोग एव विशेष:' इस व्युत्पत्ति के अनुसार नोदन एवं अभिघातरूप विशेष प्रकार के संयोग हा प्रकृत 'संयोगविशेष' शब्द से इष्ट हैं। आगे कहेंगे कि ये दोनों ही प्रकार के संयोग क्रिया के कारण हैं ।
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रूप से लेकर शब्द पर्यन्त कथित ये सात गुण असमवायिकारण हैं । समवायिकारण में 'प्रत्यासन्न' अर्थात् समवाय सम्बन्ध से सम्बद्ध जिस वस्तु में कार्य करने की सामर्थ्यं निश्चित है, वही असमवायिकारण है । कार्यों के साथ अन्वय ( अर्थात् कारण के अव्यवहित क्षण में कार्य का अवश्य रहना ) एवं व्यतिरेक ( अर्थात् जिसके न रहने पर कार्य उत्पन्न ही न हों ) यही दोनों कारणों में कार्य के उत्पादन की सामर्थ्य हैं । 'प्रत्यासन्न' शब्द 'प्रयुक्त 'प्रत्यासत्ति' शब्द समवायिकारणानुयोगिकसमवाय सम्बन्ध का वाचक है । यह समवायरूप सम्बन्ध प्रकृत में दो प्रकार का है ( १ ) समवायिकारणानुयोगिक