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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् २४३ प्रशस्तपादभाष्यम् संयोगविभागसङ्ख्यैकपृथक्त्वगुरुत्ववत्ववेगधर्माधर्मास्तूभयत्रारम्भकाः। संयोग, विभाग, संख्या, एकपृथक्त्व, गुरुत्व, द्रवत्व, वेग, धर्म और अधर्म ये नौ गुण अपने आश्रय एवं अनाश्रय दोनों प्रकार की वस्तुओं में कार्य को उत्पन्न करते हैं। न्यायकन्दली वर्तमाना रूपादयो यथासम्भवमवयविनि रूपादिकमारभन्ते, आत्मनि समवेतः प्रयत्नो हस्तादिषु क्रियाहेतुः। संयोगादय उभयत्रारम्भकाः । स्वाश्रये तदन्यत्र चारम्भकाः । तन्तुषु वर्तमानः संयोगस्तेष्वेव पटमारभते, विषयेन्द्रियसंयोगश्चात्मनि ज्ञानम् । वंशदलयोविभागोऽन्यत्राकाशे शब्दमारभते, वंशदलाकाशविभागश्च स्वाश्रय आकाशे। अवयवत्तिन्येकत्वसङ्घया अवयविन्येकत्वसङ्ख्यामारभते, स्वाश्रये च द्वित्वादिसङ्ख्याम् । अथावयवेष्वेकपृथक्त्वमवयविन्येकपृथक्त्वं स्वाश्रयेषु त्रिपृथक्त्वादिकमिति । कारणगताश्च गुरुत्वद्रवत्ववेगाः कार्ये तानारभन्ते, स्वाश्रयेषु क्रियाम् । धर्माधर्मवात्मनि सुखदुःखे परत्र चाग्न्यादौ ज्वलनादिक्रियाम् । आश्रय से भिन्न आश्रय में ही कार्य को उत्पन्न करते हैं। अवयवों में रहनेवाले रूपादि यथासम्भव अवयवो में ही रूपादि को उत्पन्न करते हैं। प्रयत्न स्वयं समवाय सम्बन्ध से आत्मा में रहता है किन्तु हाथ पैर प्रभृति अङ्गों में क्रिया को उत्पन्न करता है। संयोगादि ये नौ गुण दोनों ही प्रकार के आश्रयों में कार्य को उत्पन्न करते हैं, अर्थात् ये अपने आश्रय और उससे भिन्न आश्रय, दोनों प्रकार के आश्रयों में कार्य के उत्पादक हैं, (जैसे कि ) तन्तुओं में रहनेवाला संयोग अपने आश्रयीभूत उन तन्तुओं में ही पटरूप कार्य को उत्पन्न करता है, किन्तु विषय एवं इन्द्रिय का संयोग ( अपने आश्रयीभूत इन दोनों से भिन्न ) आत्मा में ज्ञान को उत्पन्न करता है। बांस के दो दलों का विभाग ( अपने आश्रयीभूत उन दो वंशदलों से भिन्न ) आकाश में शब्दरूप कार्य को उत्पन्न करता है, किन्तु बाँस के ही दल और आकाश का विभाग अपने आश्रयीभूत आकाश में ही शब्दरूप कार्य को उत्पन्न करते हैं। अवयव में रहनेवाली एकत्व संख्या ( अपने आश्रय से भिन्न ) अवयवी में एकत्व संख्या को उत्पन्न करती है, एवं अपने आभयरूप अवयव में द्वित्वादि संख्या को भी उत्पन्न करती है। अवयवों में रहनेवाला एकपृथक्त्व अवयवी में एकपृथक्त्व को एवं अपने आभय में त्रिपृथक्त्वादि को भी उत्पन्न करता है। इसी प्रकार कारणों में रहनेवाले गुरुत्व, द्रवत्व, वेग और स्नेह आश्रयीभूत उन कारणों के कार्यों गुरुत्व, द्रवत्व, वेग एवं स्नेहरूप कार्यों को उत्पन्न करते हैं, किन्तु अपने आश्रय For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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