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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २४२ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [ गुणसाधर्म्यवैधर्म्य र प्रशस्तपादभाष्यम् बुद्धिसुखदुःखेच्छाद्वेषभावनाशब्दाः । स्वाश्रयसमवेतारम्भ काः। रूपरसगन्धस्पर्शपरिमाणस्नेहप्रयत्नाः परत्रारम्भकाः । बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, भावना और शब्द ये सात गुण अपने आश्रय में समवाय सम्बन्ध से रहनेवाली वस्तुओं के उत्पादक हैं। रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, परिमाण, स्नेह और प्रयत्न ये सात गुण अपने आश्रय से भिन्न आश्रयों में ही कार्य को उत्पन्न करते हैं। न्यायकन्दली चाणुत्वमहत्त्वे, गुरुत्वाद् गुरुत्वान्तरं पतनं च, द्रवत्वाद् द्रवत्वान्तरं स्यन्दनक्रिया च, उष्णस्पर्शादुष्णस्पर्शः पार्थिवपरमाणुरूपादयश्च, ज्ञानाज्ज्ञानं संस्कारश्च, धर्माद्धर्मः सुखं च, अधर्मादधर्मो दुःखं च, संस्कारात् संस्कारः स्मरणं च ।। बुद्धिसुखदुःखेच्छाद्वेषभावनाशब्दाः स्वाश्रयसमवेतारम्भकाः । सुखादय'स्तावद्यत्र स्वयं वर्तन्ते तत्रैव कार्यं जनयन्ति । बुद्धिस्तु द्वित्वादिकं परत्रारभमाणाप्यात्मविशेषगुणं जनयन्ति स्वाश्रयसमवेतमेव जनयति, नान्यत्र। रूपरसगन्धस्पर्शपरिमाणस्नेहप्रयत्नाः परत्रारम्भकाः । अवयवेषु उत्पत्ति होती है । ( कारणों में रहनेवाले ) एक गुरुत्व से ( कार्य में रहनेवाली सजातीय ) दूसरी गुरुत्व एवं विजातीय पतन इन दोनों की उत्पत्ति होती है। कारणों में रहनेवाले द्रवत्व से कार्य में रहनेवाला उसका सजातीय दूसरा द्रवत्व एवं विजातीय स्यन्दन ( प्रसरण ) क्रिया इन दोनों की उत्पत्ति होती है । ( कारणों में रहनेवाले ) उष्ण स्पर्श से (कार्य में रहने वाले ) उष्ण स्पर्श रूप सजातीय कार्य की उत्पत्ति होती है, एवं पार्थिव परमाणुओं के रूपादि स्वरूप विजातीय कार्यों की भी उत्पत्ति होती है। ज्ञान से भी अपने सजातीय ज्ञान और विजातीय संस्कार दोनों की उत्पत्ति होती है । धर्म से भी सजातीय धर्म एवं विजातीय सुख दोनों ही प्रकार के कार्य होते हैं । अधर्म भी अपने सजातीय अधर्म एवं विजातीय दुःख दोनों का उत्पादक है । संस्कार भी अपने सजातीय संस्कार एवं विजातीय स्मृति दोनों का उत्पादक है । __बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, भावना और शब्द ये सात गुण अपने-अपने आश्रयों में ही समवाय सम्बन्ध से रहनेवाले पदार्थों के उत्पादक हैं। (इनमें ) सुखादि जहाँ स्वयं रहते हैं, वहीं अपने कार्यों को भी उत्पन्न करते हैं। किन्तु बुद्धि अपने आश्रय से भिन्न पदार्थों में भी द्वित्वादि संख्या को उत्पन्न करती है, आत्मा के विशेष गुणों को बुद्धि तो अपने आश्रय में ही समवाय सम्बन्ध से उत्पन्न करती है, और किसी आश्रय में नहीं। रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, परिमाण, स्नेह और प्रयत्न ये सात गुण अपने For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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