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प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम्
२४५ न्यायकन्दलो दात्ममनःसंयोगस्तेषामसमवायिकारणम् । नन्वेवं तहि धर्माधर्मयोरप्यसमवायिकारणत्वं स्थात्, न, तयोः समस्तात्मविशेषगुणोत्पतौ सामर्थ्यानवधारणात् । तथा हिधर्मादधर्मदुःखयोरनुत्पत्तिः, अधर्माच्च धर्मसुखयोरनुत्पादः । एवं ज्ञानादीनामपि प्रत्येक व्यभिचारो दर्शनीयः । सर्वत्रावधृतसामर्थ्यस्तु ज्ञातृमनःसंयोग इत्येतावता विशेषेण तस्यैवासमवायिकारणत्वम् । तथा पटरूपस्य समवायिकारणेन पटेन सहैकस्मिनन्नर्थे तन्तौ समवायात् तन्तुरूपं पटरूपस्यासमवायिकारणं, न रसादयः, तस्यैव तदुत्पत्तावन्वयव्यतिरेकाभ्यां सामर्थ्यावधारणात् । एवं रसादिष्वपि योज्यते । उष्णस्पर्शस्य पाकजारम्भे निमित्तकारणत्वमप्यस्ति, तदर्थमनुष्णस्य ग्रहणम् । रूपरसगन्धानुष्णस्पर्शपरिमाणस्नेहानां समवायिकरणैकार्थसमवायादसमवायिकारणत्वम्, कारणवतिनामेषां कार्यसजातीयारम्भकत्वात् । शब्दस्य समवाय, एवं ( २) समवायिकारण जिस वस्तु मे समवेत हो तदनुयोगिक समवाय । (प्रथम प्रकार के सम्बन्ध के अनुसार) आत्मा और मन का संयोग सुखादि का असमवायिकारण है, क्योंकि सुभ के समयायिकारण आत्मा में आत्मा और मन का संयोग समवाय सम्बन्ध से है। (प्र. ) इस प्रकार तो धर्म और अधर्म भी असमवायिकारण होंगे। ( उ० ) नहीं, क्योंकि उन दोनों में आत्मा के किसी भी विशेष गुण को उत्पन्न करने की सामर्थ्य ( अन्वय और व्यतिरेक से ) निश्चित नहीं है । इसी रीति से धर्म के द्वारा अधर्म और दुःख की उत्पत्ति और अधर्म से सुख तथा धर्म की उत्पत्ति का निराकरण होता है। इसी प्रकार आत्मा के ज्ञानादि सभी विशेष गुणों में व्यभिचार दिखाना चाहिए। आत्मा के सभी गुणों में से केवल आत्मा और मन का संयोग ही ऐसा गुण है, जिसमें आत्मा के सभी विशेष गुणों के उत्पादन की सामथ्य ( अर्थात् अन्वय और व्यतिरेक ) निर्णीत है, इसी वैशिष्ट्य के कारण आत्मा के गुणों में से केवल आत्मा और मन का संयोग ही आत्मा के सभी विशेष गुणों का असमवायिकारण है । (असमवाधिकारण के लक्षण में कथित एक दूसरै सम्बन्ध के अनुसार) तन्तुओं का रूप पट के रूप का असमवायिकारण हैं, क्योंकि पटगत रूप का समवायिकारण पट है, वह तन्तुओं में समवाय सम्बन्ध से रहता है, एवं तन्तुओं का रूप भी तन्तुओं में ही समवाय सम्बन्ध से हैं। इस प्रकार तन्तुओं के रूपों में ही पटगत रूप के उत्पादन का सामथ्यं निश्चित है रसादि में नहीं, अतः तन्तुओं के रूप ही पटगत रूप के असमवायिकारण हैं पटगत रसादि नहीं। इसी प्रकार अवयवियों में रहनेवाले रसादि का असमवायिकारणत्व अवयवों में रहनेवाले रसादि में ही समझना चाहिए। उष्ण स्पर्श पाकज रूपादि का निमित्तकारण भी है, (अतः लक्ष्यबोधक वाक्य में) 'अनुष्ण' पद लिखा है । समवायिकरणरूप एक वस्तु में कार्य के साथ समवाय सम्बन्ध से रहने के कारण रूप, रस, गन्ध, अनुष्ण स्पर्श परिमाण और स्नेह ये छः गुण असमवायिकारण होते हैं।
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