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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ७८ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [ द्रव्ये पृथिवी प्रशस्तपादभाष्यम् सा च द्विविधा-नित्या चानित्या च । परमाणुलक्षणा नित्या, कार्यलक्षणा त्वनित्या। सा च स्थैय्याद्यवयवसन्निवेशविशिष्टाऽपरजातिबहुत्वोपेता शयनासनाद्यनेकोपकारकरी च । (१) परमाणुरूपा नित्य पृथिवी एवं (२) कार्यरूपा अनित्य पृथिवी, इस भेद से पृथिवी के दो भेद हैं। इनमें कार्यरूपा पृथिवी स्थैर्यादि (घनत्व शिथिलत्वादि) अवयवों के विलक्षण संयोग से युक्त है और उसमें अनेक अपर जातियाँ रहती हैं। वह बिछावन और आसनादि द्वारा अनेक उपकारों का कारण है। न्यायकन्दली ____ यथाभूतः स्पर्शोऽस्या वैधा तथा दर्शयति-स्पर्शोऽस्या इति। पाकज: स्पर्शः पृथिव्या वैधा तस्य स्वरूपकथनमनुष्णाशीत इति। यद्यपि स्पर्शवत्पाकजौ रूपरसावप्यस्याः वैधगम्, तथापि रूपरसयोः पाकजत्वानभिधानम, अन्यथापि तयोर्वैधास्य सम्भवात्, वैधामात्रप्रतिपादनस्यैव विवक्षितत्वात् । अप्रतीयमानपाकजेषु स्तम्भादिषु स्पर्शस्य पाकजत्वमनुमानात् । स्तम्भादिषु स्पर्शः पाकजः, पार्थिवस्पर्शत्वात्, घटादिस्पर्शवत् । घटादिस्पर्शस्यापि पाकजत्वमेकेन्द्रियग्राह्यत्वे सति तद्गुणत्वात् तद्गतरूपवत् । अवान्तरभेदनिरूपणार्थमाह--नित्या चानित्या चेति । प्रकारान्तराभावसंसूचनाथौं चशब्दौ। का नित्या का चानित्येत्याह--परमाणुलक्षणा नित्या कार्यलक्षणा त्वनित्येति । उभयत्रापि लक्षणशब्दः स्वभावार्थः। परमाणु 'किस प्रकार का स्पर्श पृथिवी का असाधारण धर्म है' यह 'स्पर्शोऽस्याः' इत्यादि से दिखलाते हैं। पाकज स्पर्श हो पृथिवी का असाधारण धर्म है, 'अनुष्णाशीतः' यह अंश उसी के स्वरूप का कथन है। यद्यपि स्पर्श की तरह पाकज रूप एवं पाकज रस भी पृथिवी के असाधारण धर्म हो सकते हैं, फिर भी असाधारण धर्म के लिए कथित रूप और रस में पाकजत्व इस लिए नहीं कहा कि वे और तरह से भी पृथिवी के वैधर्म्य हो सकते हैं । यहाँ केवल वैधयं प्रतिपादन ही इष्ट है। स्तम्भादि जिन पार्थिव द्रव्यों के स्पर्श में पाकजत्व का प्रत्यक्ष नहीं होता है, उन स्पों में भी पाकजत्व का अनुमान करेंगे कि स्तम्भादि के स्पर्श पाकज हैं, क्योंकि वे पृथिवी के स्पर्श हैं, जैसे घटादि के स्पर्श । घट के स्पर्श में पाकजत्व का अनुमान इस प्रकार करेंगे कि वह पार्थिव होने के साथ साथ एक मात्र इन्द्रिय से गृहीत होता है, जैसे कि उसका रूप । (अतः वह भी पाकज है)। _ 'नित्या चानित्या च' यह वाक्य पृथिवी के अवान्तर भेद के निरूपण के सिए लिखते हैं । 'पृथिवी के और प्रकार नहीं हैं। इसकी सूचना देने के लिए ही दोनों 'च' शब्द लिखे गये हैं। इनमें कौन नित्य है ? और कौन अनित्य ? यह समझाने के For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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