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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७२ www.kobatirth.org न्यायकन्दली संवलितप्रशस्तपादभाष्यम् १. Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रशस्तपादभाष्यम् विशेषाः सिद्धाः। चाक्षुषवचनात् सप्त सङ्ख्यादयः । पतनोपदेशाद् गुरुत्वम् । 'गुणविनिवेशाधिकार' अर्थात् कौन गुण किस द्रव्य में है ? इसके प्रतिपादक वैशेषिक सूत्र के द्वितीय अध्याय के सूत्रों से पृथिवी में सिद्ध हैं । चाक्षुष घटित सूत्र ( ४ - १ - ११ ) से पृथिवी में संख्या प्रभृति सात गुण सिद्ध हैं । महर्षि कणाद ने ( ५-१-७ से ) कहा है कि पृथिवी पतनशील [ द्रव्ये पृथिवी न्यायकन्दली रूपादीनां पृथिव्या सह सम्बन्धो लभ्यते । सूत्रकारस्याप्येते गुणाः पृथिव्यामभिमता इत्याह-- एते चेति । गुणानां विनिवेशो द्रव्येषु वृत्तिः, सा प्रतिपाद्यते अनेनाधिक्रियतेऽस्मिन्निति गुणविनिवेशाधिकारो द्वितीयोऽध्यायः । तस्मिन् रूपरसगन्धस्पर्शाः पृथिव्यां सिद्धाः सूत्रकारेण प्रतिपादिताः -- रूपरसगन्धस्पर्शवती पृथिवीति । चाक्षुषवचनात् सप्त सङ्ख्यादयः । “सङ्ख्या परिमाणानि पृथक्त्वं संयोगविभाग परत्वापरत्वे कर्म च रूपिद्रव्यसमवायाच्चाक्षुषाणि" ( ४पृथिव्यां -१ ) इति चाक्षुषवचनाद् रूपवत्यां सङ्ख्यादयः सप्त -- सिद्धाः । यदि ते रूपिद्रव्येषु न सन्ति तत्समवाये तेषां प्रत्यक्षत्वं सूत्रकारेण नोक्तं स्यादित्यर्थः । For Private And Personal धर्म है” यही समझाने के लिए "रूपरसगन्धस्पर्श संख्या" इत्यादि वाक्य है। इस वाक्य में द्वन्द्व समास के बाद मतुप् प्रत्यय है, अन: कथित रूपादि गुणों में से प्रत्येक का सम्बन्ध पृथिवी के साथ ज्ञात होता है । पृथिवी में 'इतने गुण है' इस विषय में महर्षि कणाद की सम्मति " एते च" इत्यादि से दिखलाते हैं। 'गुणानां विनिवेशोऽधिक्रियते अस्मिन् ' इस व्युत्पत्ति के बल से द्रव्य में गुणों की विद्यमानता जिसमें कही गयी है, वह द्वितीय अध्याय हो यहाँ 'गुणविनिवेशाधिकार' शब्द से कहा गया है । गुणविनिवेशाधिकार के "रूपरसगन्धस्पर्शवत्ती पृथिवी ” ( २ - १ - १ ) इस सूत्र से पृथिवी मे रूप, रस, गन्ध और स्पर्श की सत्ता सूत्रकार ने कही है । "संख्या परिमाणानि पृथकत्वं संयोगविभागो परत्वापरत्वे च रूपिद्रव्यसमवायाच्चाक्षुषाणि " ( ४ - १ - १ ) इस सूत्र से संख्यादि सात गुणों को रूप युक्त द्रव्य के साथ समवाय सम्बन्ध के कारण 'चाक्षुष' कहा है । जिससे रूपयुक्त पृथिवी में संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व और अपरत्व ये सात गुण समझना चाहिए | अभिप्राय यह है कि संख्यादि सात गुण अगर रूपवाले द्रव्यों में न रहते तो 'रूपिद्रव्य के समवाय से इनका प्रत्यक्ष होता है' यह सूत्रकार न कहते । 1
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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