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मानारत्तम् ।
[Compare this with Pingala's Sanskrit aphorisms, and the learned commentary of Haláyudha thereon, also with a symbolical exposi. tion of the same in Ghosha's छन्दःसारसंग्रह: p. 34, paras. 2, 3 and 4.
-Ed.] __ [Between se and se, the following slokas are inserted in MS. (F).
This is apparently a later addition, for their enumeration even is not subsequently adhered to.-Ed.]
मत्तासंख्ये कोठ करू पंतौ छक्क पथारि । तत्य दुत्रादिक अंक धरु पढ़महि पंति बिचारि ॥ ५० । बाद अंक परिब्जि का सम्बहि पंती मझारि। पुष्य जुअल सरि अंक धर बौजौ पंति बिचारि ॥ ५१ । पढ़म पंति ठित्र अंक करि बौजी पंति गुणेहि । जो जो अंका उहरद ते तौय पंति भरेहि ॥ ५२। बि पिठ्ठद् भेत्र जोअदू अंका लहुश्रा कोट्ठा पूर अंका। पूत्रा लहना हारा तेकवद पिंगल जंपे बला दुबइ ॥ ५३ । छ पती पत्थार करिन्नसु अकबरसंख कोट्ट धरिज्जसु। पहिलो पंति बम धरिजसु दुसरौ पति दूण करिजम् ॥ ५४ । अकबर अंक गणित करि लेहि चौ[चउ]थी पंति मोह लिहि देह । चौथौ श्रद्धा पंचम पंति मोर छठ्ठ मिलि णिम्भंत ॥ ५५ । पंचमौ चौथौ तिहि मिलाउ पिंगल जंपद अंक फलाउ । विक्त भेत्र मत्त अरु बगह गुरु लहु एम संपण ह ॥ ५६ ॥ अकार मक्कदू जाणहु लोदू जे जाणे मण पाणंद हो । जो बुज्यद मोद पै बुबाद मका जाल हस्थि बि रुज्नद ।। ५७ ।
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